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"10 रुपए की मूंगफली और अरबों का चखना कारोबार: शराबियों की पहली पसंद कैसे बना ये देसी स्नैक?"
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जब भी शराब की बात होती है, तो एक सवाल हमेशा जुबां पर आ ही जाता है – “चखने में क्या है?” यह सवाल न केवल एक आदत है बल्कि देश की एक बहुत बड़ी आदत और अर्थव्यवस्था की झलक भी है। और इस आदत में जो सबसे लोकप्रिय चखना है, वो है – मसालेदार मूंगफली। जी हां, वही 10 रुपए वाला पाउच, जो हर शराब की बोतल के साथ बार, ढाबा, ठेके और घर की महफिलों में सबसे पहले नजर आता है। शायद ही कोई शराबी हो, जिसने इसे न चखा हो।
शराब के साथ सबसे लोकप्रिय चखना: मसालेदार मूंगफली
मूंगफली, जिसे आमतौर पर गरीबों का ड्रायफ्रूट कहा जाता है, लेकिन शराबियों के लिए यह स्वाद का राजा है। सस्ती, कुरकुरी और तीखी – ये तीन खासियतें इसे शराब के साथ परफेक्ट बनाती हैं। चाहे ठेके के बाहर खड़े होकर बोतल खोलना हो या फिर बार के अंदर महंगी शराब का घूंट लेना – मूंगफली दोनों जगहों पर सम्मान के साथ परोसी जाती है।
बाजार में इसके अलग-अलग फ्लेवर आते हैं – मसाला मूंगफली, लेमन मूंगफली, टमाटर फ्लेवर, गार्लिक रोस्टेड, और साधारण नमक-तेल में भुनी हुई मूंगफली। हर फ्लेवर की एक अलग फैन फॉलोइंग है।
कहां और कैसे होती है मूंगफली की खेती?
मूंगफली का सबसे अधिक उत्पादन गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में होता है। भारत, विश्व में मूंगफली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यहां मूंगफली की खेती मुख्य रूप से खरीफ मौसम (मानसून) में होती है, लेकिन कुछ जगह रबी सीजन में भी इसे उगाया जाता है।
यह एक नकदी फसल है – यानी ऐसी फसल जिससे किसान तुरंत नकद आमदनी कमा सकता है। क्योंकि मूंगफली से तेल, चारा और दाने – तीनों चीजें मिलती हैं। यही वजह है कि इसकी मांग केवल खाने में नहीं, बल्कि व्यापार और पशुपालन में भी है।
कितना बड़ा है मूंगफली का चखना कारोबार?
आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि 10 रुपए की यह साधारण दिखने वाली मूंगफली एक हजारों करोड़ रुपए के कारोबार की रीढ़ है।
भारत में पैकेज्ड नमकीन और स्नैक मार्केट करीब 40,000 से 45,000 करोड़ रुपए सालाना का है। इस पूरे मार्केट में अकेले मूंगफली और इससे बने उत्पादों का हिस्सा 8,000 से 10,000 करोड़ रुपए के बीच है।
होटल, बार, ढाबे, वाइन शॉप, रेल यात्राएं, ऑफिस पार्टीज़ और घरेलू शराब प्रेमियों के बीच इसकी जबरदस्त मांग है। बड़ी कंपनियां जैसे – हल्दीराम्स, बीकानेरवाला, बालाजी, बिकाजी, लेजेंड स्नैक्स, और स्थानीय ब्रांड – सभी मूंगफली के अलग-अलग फ्लेवर बेच रही हैं। इसके अलावा, देश भर में हजारों छोटे पैकेट्स बनाने वाले लोकल यूनिट्स हैं, जो बिना ब्रांड के ही लाखों की बिक्री कर रहे हैं।
सिर्फ स्वाद नहीं, स्ट्रैटेजी भी है मूंगफली
कुछ समय पहले तक शराब के साथ महंगे स्नैक्स या नॉनवेज का ही रिवाज था, लेकिन जैसे ही 10 रुपए की फ्लेवर वाली मूंगफली पैक में आई – पूरा बाजार बदल गया। अब यह न सिर्फ सस्ता विकल्प है, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी कम नुकसानदायक मानी जाती है।
कई बार देखा गया है कि लोग शराब कम और मूंगफली ज्यादा खाते हैं। और यही आदत छोटे-छोटे व्यवसायियों को लाखों में मुनाफा कमा कर दे रही है।
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
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गांवों में रोजगार: मूंगफली भुनने और पैकिंग करने वाली हजारों यूनिट्स ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और युवाओं को रोजगार दे रही हैं।
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किसानों की कमाई: मूंगफली की कीमतें सीजन में गिरती हैं, लेकिन प्रोसेसिंग यूनिट्स द्वारा लगातार खरीद की वजह से किसानों को स्थिर बाजार मिलता है।
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शहरों में सप्लाई चेन: डिस्ट्रीब्यूटर, पैकिंग यूनिट्स, ट्रांसपोर्ट, रिटेल – एक पूरी सप्लाई चेन मूंगफली आधारित है।
कई बार एक छोटी सी चीज एक बड़ी आर्थिक कहानी बन जाती है। 10 रुपए की यह मसालेदार मूंगफली भी कुछ ऐसी ही कहानी है – जो न केवल शराबियों की पसंद बनी हुई है, बल्कि देश में हजारों करोड़ का कारोबार खड़ा कर चुकी है। और यही बताता है कि भारत में खाने की संस्कृति, व्यापार और आदतें – तीनों मिलकर बड़े बिजनेस खड़े कर सकती हैं।