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कंपनियों को सस्ता कच्चा तेल, लेकिन आम जनता को राहत क्यों नहीं? पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर रहने के पीछे बड़ा गणित
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अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगातार नरमी दिखा रही हैं, लेकिन देश में पेट्रोल और डीज़ल की खुदरा कीमतों में कोई बदलाव नजर नहीं आता। इससे तेल विपणन कंपनियों (OMCs) की कमाई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है, जबकि उपभोक्ताओं को महंगाई से राहत नहीं मिल रही। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि चालू वित्त वर्ष में इन कंपनियों का परिचालन लाभ (Operating Profit) 50% से अधिक उछलकर 18–20 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने की संभावना है। यह सीधे तौर पर कंपनियों को मिल रहे सस्ते कच्चे तेल और स्थिर घरेलू कीमतों का असर है।
तेल कंपनियों को दोहरी कमाई – रिफाइनिंग भी फायदे में, मार्केटिंग मार्जिन भी रिकॉर्ड स्तर पर
OMCs का बिजनेस दो हिस्सों में बंटा होता है—रिफाइनिंग और मार्केटिंग।
• रिफाइनिंग से कमाई: कच्चे तेल को पेट्रोल-डीज़ल में बदलने के एवज में इन्हें सकल रिफाइनिंग मार्जिन (GRM) मिलता है।
• मार्केटिंग से कमाई: खुदरा बिक्री पर इन्हें मार्केटिंग मार्जिन मिलता है।
कच्चे तेल के $65–67 प्रति बैरल पर टिके रहने की उम्मीद है, जो कंपनियों के लिए बेहद फायदेमंद है। इसका मतलब है कि उन्हें कम दाम पर कच्चा तेल मिल रहा है। हालांकि, वैश्विक मांग कमजोर रहने से रिफाइनिंग मार्जिन थोड़ा सामान्य रहेगा, लेकिन मार्केटिंग मार्जिन इस गिरावट की पूरी भरपाई कर देगा।
यही कारण है कि खुदरा कीमतें न घटने से मार्केटिंग मार्जिन $14 प्रति बैरल यानी करीब ₹8 प्रति लीटर के आसपास पहुंच गया है।
पिछले सालों की भारी भरपाई: पुराने घाटे अब मुनाफे में बदलते दिख रहे हैं
कंपनियों की आज की मजबूत स्थिति के पीछे पिछले वर्षों का बड़ा आर्थिक दबाव भी कारण है।
फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि
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FY 2023 में कच्चे तेल का औसत भाव $93 प्रति बैरल था, लेकिन कंपनियों का परिचालन लाभ घटकर सिर्फ $0.13 प्रति बैरल रह गया था।
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यानी उस साल कमाई लगभग खत्म हो गई थी, लेकिन खुदरा कीमतें ज्यादा नहीं बढ़ाई गईं।
लंबी अवधि में कंपनियों का सामान्य परिचालन लाभ लगभग $11 प्रति बैरल माना जाता है। वर्तमान वित्त वर्ष में, जब कच्चे तेल की औसत कीमत लगभग $79 प्रति बैरल रही, तब भी कंपनियों ने $12 प्रति बैरल का लाभ अर्जित किया है — यानी सामान्य से अधिक।
विशेषज्ञ मानते हैं कि कंपनियां इस साल के मुनाफे का बड़ा हिस्सा पिछले घाटे की भरपाई और आने वाले निवेश की तैयारी में लगा रही हैं।
क्यों नहीं घटाए जा रहे पेट्रोल-डीजल के दाम? कंपनियों का तर्क
तेल मार्केटिंग कंपनियां अपनी ऊंची कमाई का उपयोग बड़ी पूंजीगत योजनाओं पर कर रही हैं।
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इस साल कंपनियों का नकद प्रवाह (cash accrual) ₹55,000 करोड़ से बढ़कर ₹75,000–80,000 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है।
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इसी राशि के आधार पर कंपनियां ₹90,000 करोड़ के ब्राउनफील्ड विस्तार यानी मौजूदा रिफाइनरियों की क्षमता बढ़ाने का प्लान आगे बढ़ा रही हैं।
क्रिसिल का कहना है कि बढ़े हुए मुनाफे से कंपनियों की कर्ज लेने की जरूरत कम हो जाएगी और उनका क्रेडिट प्रोफाइल मजबूत होगा, इसलिए खुदरा कीमतों को घटाने में अभी वे जल्दबाज़ी नहीं दिखा रहीं।
तो क्या आम उपभोक्ता को राहत मिलेगी?
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करती या अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल और नीचे नहीं जाता, तब तक पेट्रोल-डीजल सस्ते होने की संभावना कम है।
कंपनियां इस समय अपने वित्तीय बैलेंस सुधारने और भविष्य की परियोजनाओं के लिए पूंजी इकट्ठा करने में लगी हैं।
