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भारतात्मा अशोकजी सिंघल की स्मृति में वैदिक विद्वानों का सम्मान: पुणे में सम्पन्न हुआ भारतात्मा वेद पुरस्कार महोत्सव
Jagran Desk
स्वामी गोविन्ददेव गिरिजी महाराज ने कहा—“वेद भारतीय संस्कृति की मूल आत्मा”; उत्कृष्ट वेदविद्यार्थी, आदर्श वेदाध्यापक और उत्तम वेदविद्यालय को सम्मानित किया गया
पुणे में रविवार को आयोजित भारतात्मा वेद पुरस्कार महोत्सव 2025 में देशभर के प्रमुख वैदिक विद्वानों और गुरुकुलों को सम्मानित किया गया। यह समारोह भारतात्मा अशोकजी सिंघल की पुण्य स्मृति में दादासाहेब दारोड़े सभागृह में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में मुख्य आकर्षण स्वामी गोविन्ददेव गिरिजी महाराज का सान्निध्य रहा, जबकि आचार्य प्रद्युम्नजी महाराज मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। आयोजन का उद्देश्य वैदिक शिक्षा, आचार्य-परंपरा और संस्कृत अध्ययन को प्रोत्साहन देना था।
स्वामी गोविन्ददेव गिरिजी महाराज ने अपने संबोधन में कहा कि “भारतीय संस्कृति की मूल आत्मा वेद है। विश्व में प्रसारित होने वाला प्रामाणिक ज्ञान वेदों से ही उपजा है।” उन्होंने कहा कि अशोकजी सिंघल जीवनभर वेद संरक्षण और परंपरागत शिक्षा व्यवस्था को समर्पित रहे और यह पुरस्कार उसी संकल्प का विस्तार है।
सिंघल फाउंडेशन के मुख्य न्यासी सलिल सिंघलजी ने बताया कि पुरस्कार तीन श्रेणियों—उत्कृष्ट वेदविद्यार्थी, आदर्श वेदाध्यापक और उत्तम वेद विद्यालय—में प्रदान किए जाते हैं। इनकी राशि क्रमशः तीन लाख, पाँच लाख और सात लाख रुपये निर्धारित है, जिसमें प्रशस्ति पत्र और स्मृतिचिह्न भी शामिल हैं। सभी आवेदनों की प्रक्रिया ऑनलाइन माध्यम से की जाती है, जिससे पारदर्शिता सुनिश्चित होती है।
इस वर्ष का उत्कृष्ट वेदविद्यार्थी पुरस्कार हैदराबाद के नोरि केदारेश्वर शर्मा को मिला। वे कृष्ण यजुर्वेद तैत्तिरीय शाखा के घनान्त विद्वान हैं। उन्होंने रघुवंश सहित कई प्राचीन साहित्यिक ग्रंथों के साथ प्रातिशाख्य और वर्णक्रम जैसे विशिष्ट विषयों का पारंपरिक अध्ययन किया है। उनकी वेद यात्रा गुरु राम घनपाठीजी और बिल्वेश शास्त्रीजी के निर्देशन में पूर्ण हुई।
आदर्श वेदाध्यापक पुरस्कार चेन्नई के अनन्त कृष्ण भट्ट को प्रदान किया गया। वे कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा के सलक्षण घनान्त विद्वान होने के साथ न्यायशास्त्र और मीमांसा में विशेष दक्षता रखते हैं। कांची मठ में उनकी उच्च वैदिक परीक्षाएँ और मैसूर के महाराजा संस्कृत महाविद्यालय में उनका अध्ययन उन्हें इस सम्मान के योग्य बनाता है।
उत्तम वेदविद्यालय वर्ग में आंध्रप्रदेश के राजमहेन्द्रवरम् स्थित दत्तात्रेय वेदविद्यालय को चुना गया। पिछले 25 वर्षों से यह संस्थान पारंपरिक वेदाध्ययन—जैसे पद, क्रम, जटा, घन—के साथ श्रौत-स्मार्त ग्रंथों और प्रस्थानत्रयी का साङ्गोपाङ्ग शिक्षण करा रहा है। इसके अनेक विद्यार्थी देशभर में वेद सेवा में लगे हुए हैं।
अंतिम चयन सूची में साम्भाजीनगर के केदारेश्वर शर्मा, पुणे के श्रीनिधि स्वानन्द धायगुडे, पुणे के स्वानन्द शिवराम धायगुडे तथा विल्लुपुरम् और कपिलेश्वरपुरम् के वेदविद्यालय भी शामिल रहे।
यह समारोह न केवल आज की ताज़ा खबरें और भारत समाचार अपडेट का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा, बल्कि यह भारतीय ज्ञान–परंपरा के पुनरुत्थान से जुड़ी एक महत्वपूर्ण पब्लिक इंटरेस्ट स्टोरी भी बन गया। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के आयोजन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समाचार पटल पर वैदिक शिक्षा के महत्व को नई पहचान देते हैं।
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