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टैक्स के घेरे से बाहर क्रिप्टो कारोबार: ऑफशोर प्लेटफॉर्म्स ने बनाया 1% टीडीएस से बचने का रास्ता
Jagran desk
भारत सरकार द्वारा क्रिप्टो करेंसी ट्रेडिंग पर सख्त कर नियम लागू किए जाने के बावजूद, विदेशी प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए भारतीय यूज़र्स का ट्रेडिंग जारी है — और यही बात सरकार की टैक्स ट्रैकिंग प्रणाली के लिए बड़ी चुनौती बन गई है।
भारत में क्रिप्टो टैक्स व्यवस्था दो प्रमुख धाराओं पर आधारित है — धारा 115BBH, जिसके तहत क्रिप्टो से होने वाले लाभ पर 30% टैक्स, और धारा 194S, जिसके तहत हर ट्रांजेक्शन पर 1% टीडीएस (Tax Deducted at Source) काटा जाना जरूरी है।
यह टीडीएस केवल टैक्स संग्रह का माध्यम नहीं, बल्कि एक निगरानी तंत्र है जो करदाताओं के हर लेन-देन को AIS/26AS रिपोर्ट में दर्ज करता है।
लेकिन जब भारतीय यूज़र्स ऑफशोर प्लेटफॉर्म्स पर ट्रेड करते हैं — जो भारत में न तो पंजीकृत हैं और न ही टीडीएस काटते हैं — तब सरकार न तो टैक्स एकत्र कर पाती है और न ही ट्रांजेक्शन डेटा ट्रैक कर पाती है।
ऑफशोर प्लेटफॉर्म्स की चालाकी और भारतीय यूज़र्स की पहुंच
वित्तीय खुफिया इकाई (FIU-IND) ने दिसंबर 2023 से अब तक कई गैर-अनुपालक क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स पर कार्रवाई की है और इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय (MeitY) से उनके यूआरएल ब्लॉक करने का अनुरोध किया है।
इसके बावजूद, भारतीय यूज़र्स VPN, मोबाइल ऐप्स और मिरर साइट्स के माध्यम से इन तक आसानी से पहुँच रहे हैं।
ये प्लेटफॉर्म्स P2P (पीयर-टू-पीयर) ट्रेडिंग की सुविधा देते हैं, जहां क्रिप्टो एस्क्रो में रखा जाता है और खरीदार-विक्रेता आपस में UPI या Paytm से भुगतान करते हैं।
इस व्यवस्था में एक्सचेंज जिम्मेदारी यूज़र्स पर डाल देते हैं कि वे खुद टीडीएस काटें — इस तरह वे कानूनी दायित्व से बच निकलते हैं।
₹6,000 करोड़ से अधिक का टैक्स नुकसान
एस्या सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई 2022 से लेकर अब तक भारत में लगभग ₹6,000 करोड़ का टीडीएस संग्रह नहीं हो सका है।
सिर्फ दिसंबर 2023 से अक्टूबर 2024 के बीच ही ₹2,634 करोड़ का नुकसान हुआ।
हालांकि FIU ने नौ बड़े ऑफशोर प्लेटफॉर्म्स को नोटिस भेजे और कुछ को अस्थायी रूप से ब्लॉक भी किया, पर VPN और मोबाइल एप्लिकेशन के ज़रिए इनका इस्तेमाल जारी है।
2024 में एक प्रमुख वैश्विक एक्सचेंज ने FIU में पंजीकरण और ₹18.82 करोड़ का जुर्माना तो भरा, लेकिन अब तक 1% टीडीएस की स्वचालित कटौती लागू नहीं की।
PMLA अनुपालन और आयकर प्रवर्तन में तालमेल की कमी
FIU-IND जहां PMLA (मनी लॉन्ड्रिंग कानून) के तहत कार्रवाई करता है, वहीं CBDT टीडीएस और आयकर अनुपालन देखता है।
जब तक दोनों एजेंसियों में नीतिगत समन्वय नहीं होता, तब तक टैक्स ट्रेल अधूरा ही रहेगा।
1% टीडीएस सिर्फ टैक्स नहीं, बल्कि एक डेटा ट्रैकिंग टूल है, जो प्रत्येक ट्रेड को सिस्टम में दर्ज करता है।
ऑफशोर प्लेटफॉर्म्स पर यह व्यवस्था नहीं होने के कारण, AIS/26AS रिपोर्ट में लेन-देन दर्ज ही नहीं होता — जिससे टैक्स अधिकारियों को वास्तविक आय की जानकारी नहीं मिल पाती।
नीति सुधार की ज़रूरत
वर्तमान ढांचे में यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि यदि किसी भी P2P लेन-देन का एक पक्ष भारतीय निवासी है, तो एक्सचेंज को ही “टीडीएस काटने के लिए जिम्मेदार” माना जाए।
इसके अलावा, कम दर वाले टीडीएस को मजबूत रिपोर्टिंग सिस्टम के साथ जोड़ा जा सकता है, ताकि यूज़र्स पर दबाव न पड़े और सरकार को सटीक डेटा मिल सके।
'छाया बाजार' से पारदर्शिता की ओर
फिलहाल, ऑफशोर क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स भारतीय यूज़र्स के लिए सबसे बड़ा आकर्षण बने हुए हैं क्योंकि वे बिना 1% टीडीएस के आसान ट्रेडिंग की सुविधा देते हैं।
जब तक यह loophole बना रहेगा, भारत न सिर्फ राजस्व खोता रहेगा, बल्कि लेन-देन की पारदर्शिता भी खतरे में रहेगी।
सभी कानूनी साधन — चाहे वह PMLA पंजीकरण, आयकर अधिनियम संशोधन या MeitY की निगरानी प्रणाली — मौजूद हैं।
अब देखना यह है कि सरकार इस छाया बाजार को कितनी जल्दी रोशनी में लाती है।
