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इलाज के वक्त क्यों बन रहा है हेल्थ इंश्योरेंस सिरदर्द? 6 साल में शिकायतें दोगुनी होने की पूरी कहानी
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जिस हेल्थ इंश्योरेंस को लोग बीमारी के समय सबसे बड़ी सुरक्षा मानते हैं, वही आज हजारों परिवारों के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है। बीते छह वर्षों में हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़ी शिकायतों में तेज़ उछाल दर्ज किया गया है। स्थिति यह है कि अब हर दस में से आठ बीमा शिकायतें केवल हेल्थ इंश्योरेंस से संबंधित होती हैं।
कोविड महामारी के बाद इलाज के बढ़ते खर्च ने लोगों को पॉलिसी लेने के लिए प्रेरित किया, लेकिन क्लेम के समय जब फाइल अटकती है, तो भरोसा टूटने लगता है।
शिकायतों में अचानक क्यों आया उछाल?
बीमा लोकपाल कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक—
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2020 के आसपास जहां हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़ी शिकायतें कुछ हजार तक सीमित थीं
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वहीं 2024 तक यह संख्या दोगुनी से भी अधिक हो चुकी है
आज हेल्थ इंश्योरेंस अकेले ही बीमा सेक्टर की सबसे ज्यादा विवादित श्रेणी बन चुका है। विशेषज्ञ इसे “कवरेज और वास्तविकता के बीच की खाई” बता रहे हैं।
पॉलिसी है, लेकिन शर्तें कौन समझे?
अधिकांश ग्राहक पॉलिसी लेते समय केवल—
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कवरेज अमाउंट
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प्रीमियम
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कैशलेस सुविधा
पर ध्यान देते हैं।
लेकिन असली समस्या उन शर्तों में छिपी होती है, जो—
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वेटिंग पीरियड
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सब-लिमिट
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एक्सक्लूजन
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डे-केयर और OPD नियम
से जुड़ी होती हैं। इलाज के वक्त इन्हीं नियमों के कारण क्लेम पर सवाल खड़े हो जाते हैं।
कंपनी बदली, परेशानी बढ़ी?
हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी को उपभोक्ताओं के लिए बेहतर विकल्प माना गया, लेकिन कई मामलों में यह नई उलझन लेकर आई।
कंपनी बदलते समय ग्राहक यह नहीं समझ पाते कि—
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पुरानी बीमारियों की कवरेज दोबारा शुरू तो नहीं हुई
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वेटिंग पीरियड फिर से लागू तो नहीं हो गया
नतीजा—क्लेम के वक्त “शर्तें लागू” कहकर फाइल रोक दी जाती है।
अस्पताल, बीमा और मरीज—तीनों के बीच फंसी फाइल
इलाज के दौरान यदि—
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नेटवर्क हॉस्पिटल बदला जाए
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कैशलेस की जगह रीइंबर्समेंट लेना पड़े
तो क्लेम प्रक्रिया लंबी और जटिल हो जाती है। कई बार मरीज को इलाज के बाद महीनों तक अपने ही पैसों का इंतजार करना पड़ता है, जिससे शिकायतें बढ़ती हैं।
क्लेम रिजेक्ट होने की सबसे आम वजहें
बीमा कंपनियां अक्सर इन आधारों पर क्लेम खारिज करती हैं—
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इलाज मेडिकल रूप से अनिवार्य नहीं था
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अस्पताल में भर्ती की जरूरत नहीं थी
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बीमारी पहले से मौजूद थी
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मेडिकल हिस्ट्री अधूरी या गलत दी गई
ग्राहक इन कारणों को अन्याय मानते हैं, जबकि कंपनियां इसे नियमों का पालन बताती हैं।
जीवन बीमा में भी भरोसे की कमी
हेल्थ इंश्योरेंस के साथ-साथ जीवन बीमा में भी विवाद बढ़ रहे हैं।
यहां सबसे बड़ा मुद्दा—
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गलत जानकारी देकर पॉलिसी बेचना
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रिटर्न को बढ़ा-चढ़ाकर बताना
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शर्तों को स्पष्ट न करना
है, जिसकी वजह से बाद में ग्राहक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है।
आगे क्या सुधार जरूरी?
बीमा और हेल्थ सेक्टर से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि—
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हेल्थ इंश्योरेंस के लिए अलग निगरानी व्यवस्था हो
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पॉलिसी डॉक्यूमेंट सरल भाषा में हों
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क्लेम प्रक्रिया डिजिटल और पारदर्शी बने
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ग्राहक भी पूरी मेडिकल जानकारी छुपाए बिना दें
तभी इस भरोसे की खाई को पाटा जा सकता है।
हेल्थ इंश्योरेंस बीमारी में सहारा बनने के लिए है, न कि विवाद का कारण बनने के लिए।
जब तक नियम, प्रक्रिया और जानकारी—तीनों साफ नहीं होंगी, तब तक शिकायतों का बढ़ना थमने वाला नहीं है।
