सीएम मोहन यादव ने ओंकारेश्वर अभयारण्य की घोषणा की: 611 वर्ग किमी में फैलेगा क्षेत्र

Khandwa, MP

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने शनिवार को राज्य स्थापना दिवस पर भोपाल में आयोजित ‘अभ्युदय कार्यक्रम’ के दौरान ओंकारेश्वर अभयारण्य के गठन की औपचारिक घोषणा की।

 यह अभयारण्य खंडवा और देवास जिलों के वन क्षेत्रों को मिलाकर बनाया जाएगा, जिसका कुल क्षेत्रफल 611 वर्ग किलोमीटर होगा।

मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि डूब क्षेत्र (submerged area) को इस अभयारण्य की सीमा से बाहर रखा जाएगा। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार पर्यावरण संरक्षण और वन्यजीवों के संरक्षण को नई दिशा देने के लिए प्रतिबद्ध है।

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि असम से जंगली भैंसे और गेंडे मंगाने की तैयारी की जा रही है ताकि प्रदेश की जैव विविधता को और समृद्ध किया जा सके।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने 30 अक्टूबर को खंडवा के नर्मदानगर दौरे के दौरान ही इस घोषणा के संकेत दिए थे। उस समय उन्होंने नर्मदा नदी में छह मगरमच्छों को छोड़ा था और कहा था कि “मां नर्मदा की गोद में वन्यजीवों की सुरक्षा हमारा संकल्प है।”


लंबे समय से लंबित था प्रस्ताव

ओंकारेश्वर वन्यप्राणी अभयारण्य का प्रस्ताव कई वर्षों से शासन स्तर पर लंबित था। इंदिरा सागर बांध के निर्माण की स्वीकृति को 39 साल हो चुके हैं, लेकिन पर्यावरणीय आपत्तियों और केंद्र सरकार के मानकों के कारण अधिसूचना बार-बार टलती रही।

करीब पांच वर्ष पहले अभयारण्य को स्वीकृति मिलने की संभावना बन चुकी थी, परंतु कालीसिंध लिंक परियोजना के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था। अब मुख्यमंत्री की घोषणा के साथ ओंकारेश्वर अभयारण्य बनने का रास्ता साफ हो गया है।


ओंकारेश्वर अभयारण्य की प्रमुख विशेषताएँ

वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, प्रस्तावित अभयारण्य में खंडवा और देवास दोनों वनमंडलों के क्षेत्र शामिल होंगे।

  • खंडवा वनमंडल के अंतर्गत पुनासा, मूंदी, चांदगढ़ और बलडी परिक्षेत्र

  • देवास वनमंडल के अंतर्गत सतवास, कांटाफोड़, पुंजापुरा और उदयनगर परिक्षेत्र

कुल मिलाकर, 61,407 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र को इस परियोजना में शामिल किया गया है।


सीएम बोले — मध्यप्रदेश नदियों का मायका है

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा,

“मध्यप्रदेश नदियों का मायका है, यहां हर जीव को स्वच्छंद जीवन का अधिकार है।
चीतों के सफल पुनर्स्थापन के बाद अब नौरादेही अभयारण्य में नामीबिया से आए चीते छोड़े जाएंगे।
मगरमच्छ नर्मदा की पारिस्थितिकी को मजबूत करेंगे और जलीय संतुलन बनाए रखेंगे।”

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