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गुस्ताख़ इश्क़: विजय वर्मा का लवरबॉय अवतार, सादगी और शायरी से जीता दिल
Bollywood news
विजय वर्मा आज की पीढ़ी के उन चुनिंदा अभिनेताओं में शुमार हैं, जिन्होंने अपने अभिनय से बार-बार यह साबित किया है कि वह सिर्फ़ किरदार निभाते नहीं, बल्कि उन्हें जीते हैं।
गहराई से भरे, जटिल और भावनात्मक रोल्स में पहचान बनाने वाले विजय इस बार गुस्ताख़ इश्क़ में बिल्कुल नए अंदाज़ में नज़र आते हैं। लंबे समय से जिस लवरबॉय अवतार का इंतज़ार किया जा रहा था, वह अब पर्दे पर पूरी सादगी और सच्चाई के साथ सामने आया है।
फिल्म में पप्पन के किरदार के रूप में विजय वर्मा पहली ही झलक में दर्शकों से एक भावनात्मक रिश्ता बना लेते हैं। उनके अभिनय में कोई दिखावा नहीं, बल्कि एक सहज अपनापन है, जो सीधे दिल तक पहुंचता है। पप्पन की मासूमियत, उसकी मोहब्बत और अंदर छिपी टूटन को विजय इतनी नरमी से पेश करते हैं कि किरदार बनावटी नहीं, बल्कि बिल्कुल अपना-सा महसूस होता है।

विजय वर्मा का करियर इस बात का गवाह है कि वह जोखिम लेने से कभी पीछे नहीं हटे। गली बॉय में उन्होंने मुंबई के अंडरग्राउंड रैप कल्चर की खुरदुरी सच्चाई को पर्दे पर उतारा, तो डार्लिंग्स में डार्क ह्यूमर और हिंसक रिश्तों के बीच संतुलन साधते नज़र आए। दहाड़ में उनका किरदार मानसिक उलझनों और खामोश हिंसा की परतें खोलता है, जबकि आईसी 814: द कंधार हाईजैक में कैप्टन देवी शरण के रूप में उनकी संयमित और मजबूत मौजूदगी को खास सराहना मिली। जाने जान में एक समझदार और ईमानदार पुलिस अफसर के रूप में उन्होंने फिर साबित किया कि वह हर शैली में खुद को ढाल सकते हैं।
गुस्ताख़ इश्क़ में विजय को अलग बनाती है उनकी उर्दू पर पकड़ और संवादों की शायरी भरी अदायगी। फिल्म में बोले गए अल्फ़ाज़ सिर्फ़ संवाद नहीं लगते, बल्कि दिल से निकली भावनाएँ बनकर सामने आते हैं। उनकी कही शायरियाँ पप्पन की भावनात्मक यात्रा को गहराई देती हैं और दर्शक हर सीन में उस दर्द और मोहब्बत को महसूस कर पाते हैं। हल्के इशारों, आंखों की भाषा और सधी हुई बॉडी लैंग्वेज से विजय जटिल भावनाओं को बेहद आसान तरीके से व्यक्त कर देते हैं।
आने वाले समय में विजय वर्मा की फिल्म मटका किंग, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक नागराज मंजुले निर्देशित कर रहे हैं, उनके करियर में एक और अहम मोड़ साबित हो सकती है। हर नई फिल्म के साथ विजय अपने अभिनय का दायरा और बड़ा करते जा रहे हैं। उनकी ईमानदारी, मेहनत और किरदारों के प्रति समर्पण उन्हें भीड़ से अलग खड़ा करता है।
गुस्ताख़ इश्क़ में विजय वर्मा यह साफ कर देते हैं कि वह सिर्फ़ एक अभिनेता नहीं, बल्कि भावनाओं के कहानीकार हैं—जो शोर नहीं मचाते, लेकिन अपनी खामोशी से भी गहरी छाप छोड़ जाते हैं। दर्शकों और आलोचकों को अब उनकी आने वाली फिल्मों का बेसब्री से इंतज़ार है, क्योंकि विजय वर्मा की हर नई कहानी कुछ नया कहने का वादा करती है।
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