Advocate Anik AM iktear uddin भारत में मतदान का अधिकारः संवैधानिक वैधता और कानूनी सुरक्षा

एडवोकेट ए. एम. इक्तियार उद्दीन (एडवोकेट अनिक)

 Advocate A. M. Iktear Uddin (Advocate Anik), एक प्रसिद्ध वकील और Special Public Prosecutor, Prime Legal के सहयोगी हैं और Advocate Ayantika Mondal के साथ 16+ वर्षों के उच्च न्यायालय के अनुभव लाते हैं। वे मतदान को एक संवैधानिक अधिकार बताते हैं, जो लोकतंत्र के लिए आवश्यक है लेकिन कानूनी और सुरक्षा चुनौतियों से घिरा हुआ है। Advocate Anik   मुद्दों को सरल बनाने और चुनावी कदाचार से सुरक्षा सुनिश्‍चित करने के लिए मार्गदर्शित किया।

  संविधान में मतदान का कानूनी आधार

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 326 लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए मतदान का अधिकार देता है। इसके अनुसार, 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के हर भारतीय नागरिक को वोट देने का अधिकार है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ज्योति बसु बनाम देबी घोषाल (1982) में यह स्पष्ट किया कि मतदान कोई मौलिक अधिकार (Fundamental Right) नहीं बल्कि वैधानिक अधिकार (Statutory Right) है। यह अधिकार मुख्य रूप से 1950 और 1951 के प्रतिनिधित्व अधिनियम (RoPA) से संचालित होता है, जो संसद को सीमित नियंत्रण की शक्ति भी प्रदान करता है।

  मतदान क्यों वैधानिक अधिकार है, मौलिक नहीं?

संविधान निर्माताओं ने मतदान के अधिकार को वैधानिक रखा ताकि चुनावी प्रक्रियाओं में समय के साथ आवश्यक बदलाव किए जा सकें। पात्रता, अयोग्यता और चुनाव प्रणाली जैसी बातें सामाजिक और तकनीकी परिस्थितियों के अनुसार संशोधित की जा सकें — इसलिए मतदान को लचीले ढांचे में रखा गया।

 वैधानिक होने के बावजूद संवैधानिक संरक्षण

सुप्रीम कोर्ट ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) बनाम भारत संघ (2003) मामले में मतदान को राजनीतिक अभिव्यक्ति (Political Expression) का हिस्सा माना। यह अभिव्यक्ति अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ी है।
इसलिए यदि मतदान प्रक्रिया में मनमानी या असमानता होती है, तो नागरिक इसे अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के तहत चुनौती दे सकते हैं।

 मतदान की प्रक्रिया की कानूनी सुरक्षा

  1. निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ: 1951 के RoPA की धाराएँ 58 और 58A निर्वाचन आयोग को बूथ कब्जा या चुनावी गड़बड़ी की स्थिति में मतदान रद्द या स्थगित करने की शक्ति देती हैं।

  2. मतदाता प्रतिरूपण पर दंड: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 172 के तहत किसी और की पहचान में वोट डालना अपराध है।

  3. मतदाता सूची की पारदर्शिता: 1960 के निर्वाचन पंजीकरण नियम इस सूची को पारदर्शी और सुधार योग्य बनाए रखते हैं।

  4. आचार संहिता (Model Code of Conduct): यह चुनावों में नैतिकता बनाए रखने का महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है।

 मतदाता प्रतिरूपण से सुरक्षा

मतदाता प्रतिरूपण या “वोट चोरी” लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। इसे रोकने के लिए निर्वाचन आयोग ने EPIC कार्ड, फोटोयुक्त मतदाता सूची, और बायोमेट्रिक पायलट प्रोग्राम शुरू किए हैं।
मतदाता स्वयं भी ईसीआई हेल्पलाइन 1950, मोबाइल ऐप, या स्थानीय रिटर्निंग ऑफिसर को शिकायत दर्ज कर सकते हैं।

 मतदान अधिकार पर कानूनी प्रतिबंध

RoPA की धारा 62(5) के अनुसार जेल में बंद कैदी मतदान नहीं कर सकते। दिल्ली हाईकोर्ट ने अनुकूल चंद्र प्रधान बनाम भारत संघ (1997) में इसे उचित प्रतिबंध माना, हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में इसे समानता और गरिमा के अधिकार के आधार पर पुनः विचाराधीन किया जा सकता है।

 न्यायपालिका की भूमिका

भारत की न्यायपालिका ने मतदान प्रणाली को पारदर्शी बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई है।

  • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (2002) में उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड और वित्तीय स्थिति का खुलासा अनिवार्य किया गया।

  • PUCL (2013) में मतदाताओं को NOTA (None of the Above) विकल्प देने का आदेश दिया गया।

 सुधारों की दिशा में सुझाव (एडवोकेट अनिक के विचार)

  1. तकनीकी पारदर्शिता: ब्लॉकचेन आधारित ई-वोटिंग तकनीकें भविष्य में धोखाधड़ी कम कर सकती हैं।

  2. दूरस्थ मतदान: प्रवासी भारतीयों और कामकाजी नागरिकों के लिए सुरक्षित रिमोट वोटिंग सिस्टम लागू किए जा सकते हैं।

  3. नागरिक शिक्षा: मतदान जागरूकता अभियान और नागरिक प्रशिक्षण आवश्यक हैं ताकि हर नागरिक अपने अधिकार का सही प्रयोग कर सके।

 

भारत में मतदान का अधिकार एक संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त वैधानिक अधिकार है जो लोकतंत्र की रीढ़ है। इसे प्रभावी रूप से सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है कि कानूनी सुधारों, तकनीकी पारदर्शिता और नागरिक जागरूकता पर निरंतर कार्य होता रहे।
जैसा कि एडवोकेट अनिक कहते हैं —

“लोकतंत्र की मजबूती केवल अधिकारों में नहीं, बल्कि उनके जिम्मेदार प्रयोग में निहित है।”

लेखक: एडवोकेट ए. एम. इक्तियार उद्दीन (एडवोकेट अनिक)
सहयोगी: प्राइम लीगल | विशेष लोक अभियोजक

 

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