75 साल के सीताराम की रहस्यमयी कहानी: 42 साल में 14 बार सांप ने डसा, हर बार मौत से लौटे जिंदा

Digital Desk

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झांसी के पट्टी कुमर्रा गांव में चमत्कारिक जीवट के लिए मशहूर सीताराम, सपनों में मिलती है डसने की चेतावनी

झांसी जिले के चिरगांव थाना क्षेत्र के पट्टी कुमर्रा गांव में रहने वाले 75 वर्षीय सीताराम अहिरवार की जिंदगी किसी रहस्य और चमत्कार से कम नहीं है। पिछले 42 साल में उन्हें काले सांप ने 14 बार डसा, लेकिन हर बार वे मौत के मुंह से जिंदा लौट आए। यह अद्भुत जीवट और रहस्यमयी अनुभव गांव में चर्चा का विषय बना हुआ है।

सीताराम ने बताया कि पहली बार उन्हें 25 साल की उम्र में सांप ने डसा था। परिवार ने उन्हें तुरंत गांव के खैरापति मंदिर पहुंचाया, जहां तांत्रिक विधियों और झाड़फूंक के जरिए उनकी जान बचाई गई। इस घटना के बाद से उन्हें या उनकी पत्नी दिलकुवंर को डसने से दो दिन पहले सपनों में सांप दिखाई देता है। यह सपना उनके परिवार और गांव के लिए खतरे और सतर्कता का संकेत बन गया है।

सीताराम के अनुसार, परिवार और गांव वाले हमेशा कोशिश करते हैं कि वे सांप से दूर रहें, लेकिन किसी न किसी तरह सांप उनके पास पहुँच ही जाता है। जब सांप उन्हें काटता है, वे बेहोश होकर गिर पड़ते हैं। इसके बाद गांव वाले उन्हें फिर से मंदिर ले जाते हैं, जहां तांत्रिक नीम के झोंके और मंत्रों के माध्यम से उनका इलाज करते हैं। कई बार उन्हें मंदिर के चक्कर लगवाने के दौरान गिरने का भी सामना करना पड़ता है।

तांत्रिक शिरोमन सिंह बुंदेला और कमलेश का दावा है कि वे सीताराम के हाथ में ‘उर्द के दाने’ बांधते हैं। उनका कहना है कि जब तक ये दाने बने रहते हैं, सांप उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकता। लेकिन जैसे ही डसने का समय आता है, दाने अपने आप गायब हो जाते हैं और इसी दौरान काला सांप उन्हें काट लेता है।

गांव वाले इस पूरे घटनाक्रम को भगवान की लीला और रहस्यमयी चमत्कार मानते हैं। सीताराम की यह कहानी न केवल गांव में बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी चर्चा का विषय बनी हुई है। उनकी अद्भुत जीवट और बार-बार मौत से लौटने की क्षमता लोगों को हैरान करती है और विश्वास दिलाती है कि यह किसी रहस्य या ईश्वरीय शक्ति का संकेत है।

हालांकि विज्ञान के दृष्टिकोण से इसे समझाना मुश्किल है, लेकिन सीताराम और उनके परिवार के अनुभव ने इस कहानी को लोककथा और रहस्य की तरह आकार दे दिया है। 42 सालों में 14 बार जीवित रहने की कहानी सीताराम के साहस, विश्वास और अद्भुत भाग्य का प्रतीक बन गई है।

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