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धर्मेंद्र–हेमा की प्रेम कहानी: शोले के सेट से शुरू हुआ वह सफर जिसने बनाई बॉलीवुड की सबसे आइकॉनिक लव स्टोरी
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री-टेक, रणनीतियां और साहसी फैसले—कैसे धर्मेंद्र ने ड्रीम गर्ल का दिल जीता; पर्दे के पीछे की दास्तानें आज भी भारत की पब्लिक इंटरेस्ट स्टोरी में ट्रेंडिंग
बॉलीवुड की यादगार जोड़ियों की बात हो और धर्मेंद्र–हेमा मालिनी का जिक्र न आए, ऐसा संभव नहीं। पर्दे पर वीरू और बसंती की केमिस्ट्री जितनी लोकप्रिय रही, वास्तविक जीवन में दोनों की प्रेम कहानी उससे कहीं अधिक दिलचस्प और नाटकीय रही। 1970 के दशक में शुरू हुआ यह रिश्ता भारतीय सिनेमा की उन दुर्लभ प्रेम कहानियों में गिना जाता है, जिसने विरोध, चुनौतियों और तमाम उतार–चढ़ाव के बावजूद सुखांत पाया।
प्रेम का प्रारंभ: सेट पर बढ़ती नजदीकियां
धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की पहली मुलाकात 1970 में फिल्म तू हसीन मैं जवां के दौरान हुई। उस समय धर्मेंद्र एक स्थापित सुपरस्टार थे, जबकि हेमा अपने करियर की शुरुआती सीढ़ियों पर थीं। हेमा उनकी सहजता, आकर्षक व्यक्तित्व और दिलकश अंदाज से प्रभावित थीं, जबकि धर्मेंद्र भी उनकी प्रतिभा और आत्मविश्वास से मोहित हो गए। दोनों के मन में एक-दूसरे के लिए अपनापन था, पर दूरी बनाए रखने के कारण यह रिश्ता ‘इनकार और इकरार’ के बीच अटका रहा।
‘शोले’ के सेट पर प्रेम कहानी परवान चढ़ी
1972 में सीता और गीता और फिर शोले की शूटिंग ने दोनों को करीब आने का अवसर दिया। शोले के दौरान धर्मेंद्र ने वीरू का रोल इसीलिए चुना ताकि उन्हें हेमा के साथ अधिक दृश्य मिलें। डायरेक्टर रमेश सिप्पी को बिना बताए, धर्मेंद्र अक्सर जानबूझकर री-टेक करवाते थे। यूनिट के स्पॉट ब्वॉय और लाइटमैन को वे निजी तौर पर पैसे देकर संकेत करते कि वे किसी न किसी बहाने सीन खराब कर दें। इसका मकसद था—हेमा के साथ अधिक समय बिताना।
यह किस्सा बाद में पत्रकार अनुपमा चोपड़ा की पुस्तक शोले: द मेकिंग ऑफ ए क्लासिक में भी दर्ज हुआ। लगभग ढाई साल तक चली शूटिंग में धर्मेंद्र ने अपनी ‘रणनीतियों’ का भरपूर उपयोग किया और हेमा का साथ पाने की कोशिशें जारी रखीं।
प्रेम में बाधाएं और साहसी फैसले
हेमा के माता-पिता धर्मेंद्र के शादीशुदा होने के कारण इस रिश्ते के खिलाफ थे। इसी दौरान एक्टर्स संजीव कुमार और बाद में जितेंद्र ने भी हेमा को विवाह प्रस्ताव दिया, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। एक समय ऐसा भी आया जब हेमा और जितेंद्र की शादी लगभग तय हो गई थी, लेकिन धर्मेंद्र खुद जितेंद्र की पत्नी शोभा कपूर को लेकर बैंगलुरु पहुंच गए और यह शादी रुक गई।
धर्मेंद्र ने अपनी वैवाहिक स्थिति कभी नहीं छुपाई, न ही पहली पत्नी प्रकाश कौर से तलाक लिया। इसके बावजूद उन्होंने हेमा और उनके परिवार को अपने समर्पण से भरोसा दिलाया। अंततः दोनों ने 1980 में विवाह किया और तब से यह रिश्ता दृढ़ता और मर्यादा का प्रतीक बना रहा।
45 साल की वैवाहिक यात्रा—बिना किसी विवाद के
धर्मेंद्र–हेमा की प्रेम कहानी की विशेषता यही है कि दशकों तक यह रिश्ता किसी विवाद, गॉसिप या सार्वजनिक तनाव से दूर रहा। दोनों ने अपनी निजी जिंदगी को अलग रखते हुए एक सादगी भरा, सम्मानपूर्ण दांपत्य निभाया। यह कहानी आज भी पब्लिक इंटरेस्ट स्टोरी में शामिल है और भारतीय सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित प्रेम गाथाओं में गिनी जाती है।
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