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‘हमारी बौद्ध विरासत उपेक्षित नहीं रहनी चाहिए’: ITRHD प्रमुख एसके मिश्रा का संदेश
नई दिल्ली
भारत की अनदेखी और उपेक्षित बौद्ध धरोहर को नए सिरे से पहचान दिलाने की पहल एक बड़े अंतरराष्ट्रीय मंच पर आकार लेने वाली है। इंडियन ट्रस्ट फॉर रूरल हेरिटेज एंड डेवलपमेंट (ITRHD) ग्रामीण इलाकों में बिखरी बौद्ध विरासत के संरक्षण को लेकर 28 से 30 नवंबर तक एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहा है। इसका उद्देश्य देशभर के भूले-बिसरे बौद्ध स्थलों की स्थिति सुधारने और उन्हें व्यवस्थित संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ाना है।
आईटीआरएचडी के अध्यक्ष पद्म भूषण एस.के. मिश्रा ने सम्मेलन से पहले कहा कि भारत की बौद्ध विरासत का एक बड़ा हिस्सा आज भी ग्रामीण इलाकों में बिखरा पड़ा है—विशेषतः आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और गुजरात में। इनमें से कई स्थल वर्षों से उपेक्षा झेल रहे हैं और तत्काल संरक्षण की मांग करते हैं।
उन्होंने कहा, “इन स्थलों को फिर से जीवित करना सिर्फ इतिहास को बचाना नहीं है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक क्षमता को भी मजबूत करना है। जितना हम काम करेंगे, उतनी ही हमारी विशेषज्ञता बढ़ेगी।”
मिश्रा ने बताया कि ITRHD की दीर्घकालिक योजना ग्रामीण भारत की बौद्ध धरोहर के लिए देश की पहली समर्पित अकादमी स्थापित करने की है। इस अकादमी में संरक्षण विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं, छात्रों और स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
इस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति यह है कि आंध्र प्रदेश सरकार नागार्जुनकोंडा में पाँच एकड़ भूमि इस परियोजना के लिए आवंटित कर चुकी है। इसके ढांचे, पाठ्यक्रम और संचालन पर निर्णय लेने के लिए यह तीन दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है, जिसमें 15 देशों के विशेषज्ञ शामिल होंगे।
भारत के विशेषज्ञों के साथ नेपाल, भूटान, श्रीलंका, थाईलैंड और म्यांमार के विद्वानों को भी आमंत्रित किया गया है, ताकि बौद्ध सांस्कृतिक धरोहर पर साझा विचार-विमर्श किया जा सके।
मिश्रा ने विश्वास जताया कि यह पहल अंतरराष्ट्रीय पहचान हासिल करेगी और भारत ग्रामीण बौद्ध धरोहर संरक्षण का नेतृत्व करेगा।
फंडिंग को लेकर उन्होंने साफ कहा कि यही सबसे बड़ी चुनौती है। सरकार से सहायता के लिए प्रस्ताव भेजे जा चुके हैं, लेकिन अब तक कोई औपचारिक मंजूरी नहीं मिली है। इसके बावजूद ITRHD ने स्वयं के प्रयासों से 80 लाख रुपये एकत्र कर लिए हैं।
मिश्रा बोले, “चुनौतियाँ हमें रोकती नहीं हैं। जितनी बड़ी मुश्किल, उतनी ही हमारी प्रतिबद्धता बढ़ जाती है।”
