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ब्रिटेन पर वैश्विक दबाव बढ़ा: औपनिवेशिक दौर की क्षतिपूर्ति के लिए 180 ट्रिलियन डॉलर का अभूतपूर्व दावा
INTERNATIONAL
ब्रिटिश उपनिवेशवाद से प्रभावित देशों ने इतिहास में पहली बार एकजुट होकर 180 ट्रिलियन डॉलर की विशाल क्षतिपूर्ति की मांग उठाई है। यह मानव इतिहास का सबसे बड़ा वित्तीय दावा माना जा रहा है, जिसने औपनिवेशिक अन्याय पर वर्षों से जारी बहस को एक गंभीर अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक चुनौती में बदल दिया है।
यह संयुक्त दावा कैरेबियन, अफ्रीका और एशिया के कई देशों से मिलकर बना है। दशकों से बिखरी आवाज़ों को हालिया अकादमिक शोध और समन्वित कूटनीतिक पहल ने नई मजबूती दी है। रविवार को अल्जीयर्स में आयोजित अफ्रीकी नेताओं के सम्मेलन में अफ्रीकी संघ ने अपना संयुक्त दावा अंतिम रूप दिया, जिसमें महाद्वीप को ब्रिटिश शासन से हुए आर्थिक और सामाजिक नुकसान को 100–120 ट्रिलियन डॉलर आंका गया है। नाइजीरिया पहले ही 5 ट्रिलियन डॉलर का अलग दावा पेश कर चुका है।
कैरेबियन समुदाय (CARICOM) ने भी नवंबर में लंदन पहुंचकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री सर कीयर स्टार्मर के समक्ष अपना 24 ट्रिलियन डॉलर का सामूहिक दावा रखा। CARICOM का कहना है कि उपनिवेशवाद, दास व्यापार और जबरन श्रम ने क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं को गहरी क्षति पहुंचाई और विकास को सदियों पीछे धकेल दिया। अकेले बारबाडोस पर हुए ऐतिहासिक नुकसान का मूल्यांकन 4.9 ट्रिलियन डॉलर बताया गया है।
इन दावों को भारत से आए नए शोध ने और मजबूती दी है। Oxfam की 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन ने अपने शासनकाल के दौरान भारत से 65 ट्रिलियन डॉलर मूल्य के संसाधन निकाले। यह आंकड़ा वैश्विक विमर्श का केंद्र बन चुका है और विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे अकादमिक मूल्यांकन अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों में कानूनी आधार को मजबूत कर सकते हैं। हाल ही में जारी डॉक्यूमेंट्री ‘From Slaves to Bond’ ने दासता, श्रम शोषण और आधुनिक आर्थिक असमानताओं के बीच संबंधों को उजागर कर बहस को और गहरा कर दिया है।
राजनीतिक रूप से यह मुद्दा ब्रिटेन के लिए अत्यंत संवेदनशील है। 2024 में कीयर स्टार्मर ने 55 कॉमनवेल्थ देशों की मांग पर “क्षतिपूर्ति न्याय” को लेकर चर्चा की सहमति दी थी और ट्रांस-अटलांटिक दास व्यापार को “अमानवीय और अक्षम्य” बताया था। हालांकि, प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी सरकार अब भी इस रुख पर कायम है कि खेद और माफी संभव है, लेकिन प्रत्यक्ष आर्थिक क्षतिपूर्ति नहीं।
अब जबकि 180 ट्रिलियन डॉलर की राशि औपचारिक रूप से वैश्विक चर्चा में है, ब्रिटेन अपने साम्राज्यवादी अतीत से जुड़े सबसे भारी सवालों का सामना कर रहा है। आने वाले महीनों में तय होगा कि यह पहल वास्तविक न्याय की दिशा में आगे बढ़ती है या फिर एक बार फिर इतिहास के पन्नों में अधूरी मांग बनकर रह जाती है।
