छतरपुर में मोबाइल टूटने का सदमा: 10वीं के छात्र ने की आत्महत्या की कोशिश, हालत गंभीर

छतरपुर (म.प्र.)

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मां से मरम्मत के पैसे नहीं मिलने पर छात्र ने खाया जहरीला पदार्थ, मोबाइल लत पर उठे सवाल

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले से एक चिंताजनक घटना सामने आई है, जहां 10वीं कक्षा में पढ़ने वाले 17 वर्षीय छात्र ने मोबाइल फोन की स्क्रीन टूटने के बाद जहरीला पदार्थ खाकर आत्महत्या का प्रयास किया। घटना सिविल लाइन थाना क्षेत्र के एक गांव की बताई जा रही है। छात्र को गंभीर हालत में जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां डॉक्टरों की निगरानी में उसका इलाज जारी है।

परिजनों और अस्पताल सूत्रों के अनुसार, छात्र का मोबाइल फोन अचानक खराब हो गया था। स्क्रीन टूटने के कारण वह फोन इस्तेमाल नहीं कर पा रहा था। छात्र ने इसे ठीक कराने के लिए अपनी मां से पैसे मांगे थे। परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्य होने के कारण मां ने तत्काल मरम्मत कराने में असमर्थता जताई और कुछ समय बाद फोन ठीक कराने का भरोसा दिलाया। इसी बात से छात्र मानसिक रूप से टूट गया और आवेग में आकर घर में रखा जहरीला पदार्थ खा लिया।

घटना की जानकारी मिलते ही परिजनों ने बिना समय गंवाए छात्र को जिला अस्पताल पहुंचाया। डॉक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद उसे मेडिसिन वार्ड में भर्ती कर ऑब्जर्वेशन में रखा है। चिकित्सकों के मुताबिक छात्र की हालत फिलहाल गंभीर लेकिन नियंत्रण में है। समय पर इलाज मिलने से उसकी जान बच गई।

इस घटना ने परिवार को झकझोर कर रख दिया है। अस्पताल में भर्ती बेटे के पास बैठी मां बार-बार खुद को दोषी ठहरा रही है। परिजनों का कहना है कि छात्र पढ़ाई में सामान्य था और हाल के दिनों में मोबाइल फोन से उसका लगाव काफी बढ़ गया था। फोन खराब होने के बाद वह असामान्य रूप से चुप और परेशान रहने लगा था।

इलाज के दौरान छात्र ने भी अपने कदम पर पछतावा जताया है। उसने डॉक्टरों और परिजनों से कहा कि वह क्षणिक निराशा में गलत फैसला कर बैठा। छात्र का कहना है कि मोबाइल टूटने से उसे गहरा आघात लगा, लेकिन अब उसे समझ आ गया है कि उसके इस कदम से पूरे परिवार को कितना दुख पहुंचा।

मनोचिकित्सकों और सामाजिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह घटना किशोरों में बढ़ती डिजिटल निर्भरता और मानसिक दबाव की ओर इशारा करती है। मोबाइल फोन आज बच्चों के जीवन का अहम हिस्सा बन चुके हैं, लेकिन जरूरत से ज्यादा लगाव भावनात्मक असंतुलन पैदा कर सकता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि अभिभावकों को बच्चों से खुलकर संवाद करना चाहिए और उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने पर ध्यान देना चाहिए।

प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी अपील की गई है कि किसी भी तरह की मानसिक परेशानी या निराशा की स्थिति में परिवार और समाज को समय रहते सहयोग करना चाहिए। यदि कोई बच्चा या युवा अत्यधिक तनाव में हो, तो पेशेवर मदद लेने में संकोच नहीं करना चाहिए।

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