बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: नाम के आगे ‘पद्म श्री’, ‘पद्म भूषण’ या ‘भारत रत्न’ लिखना अवैध

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अदालत ने कहा– नागरिक सम्मान उपाधि नहीं, सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला देते हुए सख्त निर्देश

बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम कानूनी टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया कि ‘पद्म श्री’, ‘पद्म भूषण’, ‘पद्म विभूषण’ और ‘भारत रत्न’ जैसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मानों को किसी भी व्यक्ति के नाम के आगे या पीछे नहीं जोड़ा जा सकता। अदालत ने कहा कि ये सम्मान उपाधि (Title) नहीं हैं और इनका नाम के साथ इस्तेमाल कानून के खिलाफ है।

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरेशन की एकल पीठ ने एक सार्वजनिक ट्रस्ट से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान की। अदालत की नजर याचिका के शीर्षक पर पड़ी, जिसमें एक पद्म श्री सम्मान प्राप्त व्यक्ति का नाम “पद्म श्री डॉ. शरद एम. हर्डीकर” के रूप में दर्ज था। इसी पर अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कड़ी आपत्ति जताई।

अदालत ने क्या कहा

न्यायमूर्ति सुंदरेशन ने कहा कि नागरिक पुरस्कार सम्मान के रूप में दिए जाते हैं, न कि किसी व्यक्ति की पहचान का हिस्सा बनने के लिए। अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि पुरस्कार पाने वाले इन सम्मानों का उल्लेख अपने नाम के साथ उपसर्ग (Prefix) या प्रत्यय (Suffix) के रूप में नहीं कर सकते।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे सम्मानों का नाम के साथ प्रयोग न केवल संवैधानिक भावना के विरुद्ध है, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों का उल्लंघन भी है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 1995 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के ऐतिहासिक फैसले का उल्लेख किया। उस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि ‘भारत रत्न’ और ‘पद्म’ पुरस्कार कोई उपाधि नहीं हैं और इनका नाम के साथ इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसले देश की सभी अदालतों, संस्थानों और नागरिकों पर बाध्यकारी होते हैं। ऐसे में इस नियम की अनदेखी की कोई गुंजाइश नहीं है।

निचली अदालतों को भी निर्देश

अदालत ने निचली अदालतों और रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वे अपने रिकॉर्ड में इस तरह के नागरिक सम्मानों को नाम के साथ दर्ज न करें। साथ ही भविष्य में दायर होने वाली याचिकाओं, हलफनामों और अदालती दस्तावेजों में इस नियम का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाए।

क्यों अहम है यह आदेश

कानूनी जानकारों के अनुसार, यह आदेश केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि नागरिक समानता और संवैधानिक मूल्यों से जुड़ा मुद्दा है। संविधान उपाधियों के चलन को हतोत्साहित करता है, ताकि किसी भी नागरिक को विशेष दर्जा न मिले।

हाईकोर्ट के इस स्पष्ट निर्देश के बाद संभावना है कि सरकारी रिकॉर्ड, शैक्षणिक दस्तावेजों, ट्रस्ट और संस्थानों में नाम लिखने की प्रक्रिया को लेकर अधिक सतर्कता बरती जाएगी। यह आदेश आने वाले समय में अन्य अदालतों के लिए भी एक मजबूत मिसाल माना जा रहा है।

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