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बिहार चुनाव 2025: बाहुबलियों और परिवारवाद की जंग, कई सीटों पर दबदबा और साख की लड़ाई
Digital Desk

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और अब चुनावी मैदान में NDA और महागठबंधन के उम्मीदवार पूरी ताकत के साथ चुनावी प्रचार में जुट गए हैं। इस बार भी चुनावी समीकरणों में जाति, परिवारवाद और बाहुबलियों का गहरा प्रभाव देखने को मिल रहा है। राजद, जदयू, भाजपा और अन्य पार्टियों के कई उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि विवादित या आपराधिक मानी जाती है।
चुनाव में बाहुबली उम्मीदवारों की एंट्री पहले की तरह इस बार भी हुई है। कहीं खुद बाहुबली ताल ठोंक रहे हैं, तो कई बार उनके करीबी चुनावी मैदान में हैं। यह चुनाव केवल राजनीतिक पार्टियों के बीच नहीं बल्कि साख, विरासत और दबदबा की लड़ाई भी बन चुका है।
मुख्य बाहुबली उम्मीदवार और उनके क्षेत्रीय दबदबे का विश्लेषण
मोकामा विधानसभा सीट: अनंत सिंह बनाम वीणा देवी
मोकामा की सियासत हमेशा बाहुबलियों के इर्द-गिर्द रही है। इस बार जदयू ने छोटे सरकार के नाम से प्रसिद्ध अनंत सिंह को उम्मीदवार बनाया है, जबकि राजद ने सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी को मैदान में उतारा है। अनंत सिंह लगातार पांच बार मोकामा से जीत चुके हैं। हालांकि, 2022 में AK-47 रखने के मामले में जेल जाने के बाद उनकी जगह उनकी पत्नी ने उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
इस बार अनंत सिंह जेल से जमानत पर रिहा हुए हैं और फिर से जदयू ने उन्हें टिकट दिया। वीणा देवी भी अपने इलाके में काफी लोकप्रिय हैं। मोकामा सीट पर इस बार एक बार फिर बाहुबली बनाम बाहुबली का मुकाबला देखने को मिलेगा।
नवीनगर विधानसभा सीट: चेतन आनंद की एंट्री
राजपूत बाहुबली नेता आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद जदयू के टिकट पर नवीनगर से चुनावी मैदान में हैं। आनंद मोहन गोपालगंज के कलेक्टर जी कृष्णैय्या मर्डर केस में 15 साल जेल काट चुके हैं और अब जेल से छूटकर राजनीति में सक्रिय हैं। चेतन आनंद का यह मुकाबला क्षेत्रीय राजनीति में नई बहस पैदा कर रहा है।
एकमा सीट: धूमल सिंह की दावेदारी
सारण के एकमा से बाहुबली नेता मनोरंजन सिंह उर्फ धूमल सिंह जदयू के टिकट पर मैदान में हैं। वर्ष 2020 में उनकी पत्नी सीता देवी ने इसी सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। धूमल सिंह की पहचान बाहुबली नेता के रूप में होती है और उनका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से घनिष्ठ संबंध है।
भोजपुर जिले में पांडे परिवार की सियासत
भोजपुर के तरारी सीट से सुनील पांडे के बेटे प्रशांत बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, ब्रहमपुर से सुनील पांडे के भाई हुलास पांडे एलजेपी (आर) के उम्मीदवार हैं। भोजपुर की सियासत में पांडे परिवार का दबदबा साफ नजर आता है।
वारिसलीगंज सीट: बाहुबली-बहुबलियों की टक्कर
वारिसलीगंज सीट पर लालू प्रसाद की राजद ने बाहुबली नेता अशोक महतो की पत्नी अनीता कुमारी को उतारा है। उनका मुकाबला भाजपा विधायक अरुणा देवी से है। अरुणा देवी बाहुबली नेता अखिलेश सिंह की पत्नी हैं। यह मुकाबला क्षेत्रीय राजनीति में काफी चर्चा का विषय बना हुआ है।
कुचायकोट विधानसभा: बाहुबली बनाम उद्योगपति
कुचायकोट सीट पर बाहुबली विधायक अमरेंद्र कुमार उर्फ पप्पू पांडेय छठवीं बार चुनावी मैदान में हैं। उनका मुकाबला महागठबंधन के नए चेहरे और दुबई के उद्योगपति हरिनारायण सिंह कुशवाहा से है। अमरेंद्र कुमार ने गोपालगंज के कुचायकोट से लगातार पांच बार जीत हासिल की है।
रघुनाथपुर: ओसामा शहाब की एंट्री
राजद ने बाहुबली नेता शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब को रघुनाथपुर विधानसभा सीट का उम्मीदवार बनाया है। हालांकि यह उनका पहला चुनाव है, लेकिन इसे शहाबुद्दीन परिवार की राजनीतिक अग्निपरीक्षा माना जा रहा है।
संदेश (भोजपुर): बालू माफिया के बीच टक्कर
भोजपुर की संदेश विधानसभा सीट पर दो बालू माफिया के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है। राजद ने अरुण यादव के बेटे दीपू राणावत को उतारा है, जबकि जदयू ने राधा चरण साह को उम्मीदवार बनाया है।
लालगंज और नवादा सीटें
लालगंज से राजद ने बाहुबली माने जाने वाले मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला को उतारा है। शिवानी के पिता मुन्ना शुक्ला ने 2000 में निर्दलीय चुनाव जीत हासिल की थी।
नवादा और दानापुर में भी बाहुबली नेताओं और उनके परिवारों का दबदबा देखा जा रहा है। राजद और जदयू ने इन सीटों पर पुराने नेताओं और नए चेहरों को उतारा है।
मुजफ्फरपुर-बनियापुर:
जदयू ने उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व नाबालिग प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर सिंह को टिकट दिया है, जबकि उनके भाई जन्मदिन सिंह बीजेपी के उम्मीदवार हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बाहुबली नेताओं और उनके परिवारों का प्रभाव हर क्षेत्र में साफ नजर आ रहा है। चाहे वह राजनीतिक शक्ति, जाति समीकरण, या पारिवारिक विरासत हो, ये उम्मीदवार चुनावी रणभूमि को बेहद प्रतिस्पर्धी और जटिल बना रहे हैं। कई सीटों पर यह चुनाव केवल पार्टी की लड़ाई नहीं बल्कि साख, दबदबा और व्यक्तिगत शक्ति के लिए भी है।