एनएसईएफआई ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया स्वागत: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को मिलेगी नई राह

डिजिटल डेस्क

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ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन संरक्षण में संतुलन, ₹65,000 करोड़ की परियोजनाओं को नियामक स्पष्टता

नेशनल सोलर एनर्जी फेडरेशन ऑफ इंडिया (NSEFI) ने 19 दिसंबर 2025 को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है, जिसमें ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) और लेसर फ्लोरिकन (LF) के संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के बीच संतुलन स्थापित किया गया। संगठन ने कहा कि यह निर्णय वन्यजीव सुरक्षा और भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों के बीच व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2024 में गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को स्वीकार किया, जिसमें राजस्थान और गुजरात में जीआईबी और LF के प्राथमिक आवास क्षेत्रों की पहचान और संरक्षण के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी उपाय सुझाए गए थे। विशेषज्ञ समिति ने राजस्थान में 14,013 वर्ग किलोमीटर और गुजरात में 740 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रों को प्राथमिक घोषित किया।

निर्देशों में प्रमुख बिंदु
फैसले में पावरलाइन कॉरिडोर के निर्माण, महत्वपूर्ण ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों के समयबद्ध शमन और पक्षियों के टकराव को कम करने के उपाय शामिल हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया कि चिन्हित बिजली लाइनों को दो साल के भीतर भूमिगत किया जाए या उनका मार्ग बदला जाए। वहीं, गैर-प्राथमिक क्षेत्रों में साझा मार्गों के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को अनुकूलित करने की अनुमति दी गई है।

एनएसईएफआई ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अब लगभग ₹65,000 करोड़ मूल्य की परियोजनाओं को नियामक स्पष्टता मिली है। इससे डेवलपर्स को योजना बनाने, समयबद्ध क्रियान्वयन और परियोजनाओं के लाभकारी संचालन में मदद मिलेगी। संगठन ने कहा कि वे संबंधित प्राधिकरणों के साथ पावरलाइन कॉरिडोर और तकनीकी उपायों के कार्यान्वयन में सहयोग करेंगे।

संतुलन और सुरक्षा का महत्व
NSEFI के अनुसार, फैसले में वन्यजीव संरक्षण को प्राथमिकता देते हुए इन-सिटू और एक्स-सिटू उपायों को मजबूत करने पर जोर दिया गया। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि रेगिस्तानी क्षेत्रों में ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों पर पूर्ण प्रतिबंध तकनीकी रूप से व्यावहारिक नहीं है और इसके पक्ष में वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला न केवल संकटग्रस्त पक्षियों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है बल्कि भारत के जलवायु लक्ष्यों और नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार को भी गति देगा। अदालत ने यह भी माना कि जीवाश्म ईंधन पर अत्यधिक निर्भरता पर्यावरणीय जोखिम बढ़ा सकती है, इसलिए नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार अनिवार्य है।

एनएसईएफआई और संबंधित मंत्रालयों ने कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाए गए संरक्षण और ऊर्जा संतुलन उपायों को लागू करने में पूरी तरह सहयोग करेंगे। इसके तहत बिजली लाइनों की शमन रणनीतियों, पावरलाइन कॉरिडोर और स्थान-निर्धारित तकनीकी उपायों को लागू किया जाएगा।

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