भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं नलखेड़ा की मां बगुलामुखी

BHOPAL, MP

मां बगलामुखी जी आठवीं महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए, हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं।

तीन मुख वाली मां बगलामुखी मंदिर  इंदौर से दूरी 150 किमी, उज्जैन से 100 किमी, कोटा, राजस्थान से 170 किमी, भोपाल से 180 किमी, आगर से 35 किमी, शाजापुर से सड़क मार्ग से 62 किमी, डोंगरगांव, आगर मालवा से सड़क मार्ग से 56 किमी। यह इंदौर कोटा राज्य राजमार्ग (एसएच 27) पर आगर मालवा और सुसनेर के बीच स्थित आमला चौराहा से सिर्फ 15 किमी दूर है।

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मान्यता तो ये भी है कि महाभारत काल में यहीं से पांडवों को विजय श्री का वरदान प्राप्त हुआ था। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने करने के लिए कहा था। उस समय मां की मूर्ति एक चबूतरे पर विराजमान थी। मान्यता है कि पांडवों ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूपा की आराधना कर विपत्तियों से मुक्ति पाई और अपना खोया हुआ राच्य वापस पा लिया।


मंदिर के ठीक पीछे बड़ी सी यज्ञ शाला है जिसमे बहुत सारे हवन कुंड स्थापित है। यज्ञ शाला में एक विशेष प्रकार का तांत्रिक यज्ञ  कई प्रकार की हवन सामग्री से किया जाता। बगलामुखी का यह तांत्रिक हवन ही ब्रम्हास्त्र की तरह ही कार्य की सिद्धि करवाता है। चुनाव में विजय प्राप्ति,कोर्ट कचहरी के विवादों में विजय,तंत्र क्रिया से मुक्ति, व्यापार में वृद्धि, आदि कार्यो की सिद्धि के लिए तांत्रिक यज्ञ करवाया जाता है। यज्ञ ही इस मंदिर की मुख्य क्रिया है।
मां बगलामुखी जी आठवीं महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए, हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं।
मां बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। मां बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे च्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए।


 प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है बगलामुखी। मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है।
 इस मंदिर में माता बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती भी विराजमान हैं। इस मंदिर की स्थापना महाभारत में विजय पाने के लिए भगवान कृष्ण के निर्देश पर महाराजा युधि?ष्ठिर ने की थी। मान्यता यह भी है कि यहां की बगलामुखी प्रतिमा स्वयंभू है।
 यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है। सन् 1815 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था। इस मंदिर में लोग अपनी मनोकामना पूरी करने या किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ, हवन या पूजन-पाठ कराते हैं।


इस मंदिर में बिल्वपत्र, चंपा, सफेद आंकड़ा, आंवला, नीम एवं पीपल के वृक्ष एक साथ स्थित हैं। इसके आसपास सुंदर और हरा-भरा बगीचा देखते ही बनता है। नवरात्रि में यहां पर भक्तों का हुजूम लगा रहता है। मंदिर श्मशान क्षेत्र में होने के कारण वर्षभर यहां पर कम  तीन मुख वाली मां बगलामुखी का मंदिर मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले के नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है।  मान्यता है कि बगुलामुखी का यह मंदिर महाभारत के समय का है। शरीबकृष्ण की प्रेरणा से पांड़वों ने यहां महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए साधना की थी।  पहले इसे माताजी को देहरा के नाम से जाना जाता था। यहां पूजा में हल्दी और पीले रंग के पूजन सामग्री का विशेष महत्व है। यह संभवत: अकेला मंदिर है जहां मां को पूजा में खड़ी हल्दी और हल्दी पाउडर चढ़ाया जाता है।

त्रिशक्ति मां विराजित है मंदिर में

इस मंदिर में त्रिशक्ति मां विराजित है। ऐसी मान्यता है कि मध्य में मां बगलामुखी, दाएं मां लक्ष्मी तथा बाएं मां सरस्वती हैं। त्रिशक्ति मां का मंदिर भारतवर्ष में दूसरा कहीं नहीं है। बेलपत्र, चंपा, सफेद, आंकडे, आंवले तथा नीम एवं पीपल (एकसाथ) स्थित हैं।  द्वापर युग के इस मंदिर में साधु-संत, तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते हैं।

तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है मां बगलामुखी
 मान्यता अनुसार मां बगलामुखी मंदिर में तंत्र साधना के लिए विशेष संयोग है।  मंदिर के चारों तरफ श्मशान व पास में ही नदी के कारण इसका महत्व और भी बढ़ गया है। पश्चिम में ग्राम गुदरावन, पूर्व में कब्रिस्तान और दक्षिण में कच्चा श्मशान है।  उन्होंने बताया कि बगलामुखी तंत्र की देवी हैं, इसलिए यहां पर तांत्रिक अनुष्ठानों का महत्व अधिक है।  यह मंदिर इसलिए भी महत्व रखता है, क्योंकि यहां की मूर्ति स्वयंभू और जागृत है।
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महारुद्र की मान्यता है देवी की
 बगलामुखी को महारुद्र (मृत्युंजय शिव) की मूल शक्ति के रूप में माना जाता है। वैदिक शब्द बग्ला है उसका विकृत आगमोक्ता शब्द बगला अत मां बगलामुखी कहा जाता है। भगवती बगला अष्टमी विद्या है। आराधना श्री काली, तारा तथा षोडशी का ही पूर्व क्रम है। सिद्ध-विद्या-त्रयी में पहला स्थान है। मां बगलामुखी को रौद्र रूपिणी, स्तभिंनी, भ्रामरी, क्षोभिनी, मोहनी, संहारनी, द्राविनी, जिम्भिनी, पीतांबरा, देवी त्रिनेभी, विष्णुवनिता, विष्णु-शंकर भमिनी, रुद्रमूर्ति, रौद्राणी, नक्षत्ररूपा, नागेश्वरी, सौभाग्य-दायनी, सुत्र संहार, कारिणी सिद्ध रूपिणी, महारावन-हारिणी परमेश्वरी, परतंत्र, विनाशनी, पीत-वासना, पीत-पुष्प-प्रिया, पीतहारा, पीत-स्वरूपिणी, ब्रह्मरूपा कहा जाता है।
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