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भोपाल में लव जिहाद के खिलाफ उबाल: महिलाओं की सड़कों पर जोरदार हुंकार, आरोपियों को फांसी की मांग
Bhopal
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राजधानी भोपाल समेत मध्यप्रदेश के कई शहरों में शुक्रवार को लव जिहाद के खिलाफ सकल हिंदू समाज के नेतृत्व में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ। राजधानी के 26 प्रमुख चौराहों पर एक साथ प्रदर्शन कर समाज के विभिन्न वर्गों ने इस मुद्दे पर सख्त कानून बनाने और दोषियों को फांसी देने की मांग की।
कोलार के बीमा कुंज, बोर्ड ऑफिस चौराहा, लाल घाटी, भवानी चौक सोमवारा, नादरा बस स्टैंड और नेहरू नगर जैसे इलाकों में भारी भीड़ जमा हुई। प्रदर्शन में बड़ी संख्या में घरेलू महिलाएं, छात्राएं, युवतियां और धार्मिक संगठनों से जुड़े कार्यकर्ता शामिल हुए।
प्रदर्शन में शामिल भाजपा नेता राजो मालवीय ने कहा, "हिंदू समाज को अब आत्मरक्षा के साथ-साथ समाज की बेटियों की सुरक्षा के लिए संगठित और प्रशिक्षित होने की आवश्यकता है। जब-जब हमारी बेटियां पहचान छिपाकर बनाए गए रिश्तों में उलझी हैं, उन्हें अंततः धोखा और मौत ही मिली है।"
प्रदर्शनकारियों ने हाथों में "लव जिहाद मुर्दाबाद" की तख्तियां लेकर नारेबाजी की। बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने इस दौरान लव जिहाद की तुलना 'पाकिस्तानी साजिश' से करते हुए आक्रोश जताया।
राजगढ़ में आधे दिन का बंद, ज्ञापन सौंपा गया
राजगढ़ में भी सकल हिंदू समाज ने आधे दिन के बंद का आह्वान किया। व्यापारियों ने अपनी दुकानें बंद रखीं और बड़ी संख्या में लोग रामपुरिया बाबाजी मंदिर परिसर में एकत्रित हुए। यहां सामूहिक हनुमान चालीसा का पाठ कर रैली निकाली गई। रैली में जेसीबी मशीन का उपयोग कर प्रतीकात्मक विरोध किया गया। प्रदर्शन के दौरान तहसीलदार को ज्ञापन सौंपते हुए आरोपी के मकान पर बुलडोजर चलाने की मांग भी की गई।
इस बीच, पुलिस के साथ हल्की धक्का-मुक्की की भी खबरें सामने आईं।
एबीवीपी का पहले ही प्रदर्शन
इससे पहले सोमवार को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने भी लव जिहाद, धर्मांतरण और कॉलेज परिसरों में बढ़ रही असामाजिक गतिविधियों को लेकर प्रदर्शन किया था। परिषद ने प्रतीकात्मक अर्थी यात्रा निकालते हुए प्रशासन से छात्राओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की थी।
सख्त कानून की मांग
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जब तक लव जिहाद के दोषियों के लिए कड़ा कानून नहीं बनाया जाता, तब तक इस तरह की घटनाएं समाज को लगातार चोट पहुंचाती रहेंगी। वहीं प्रशासन की भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े किए गए हैं कि किस हद तक कानून व्यवस्था इस सामाजिक चुनौती को रोकने में सक्षम है।