- Hindi News
- राज्य
- मध्य प्रदेश
- डीएमई नियुक्ति पर विवाद गहराया: डॉ. अरुणा कुमार की पदोन्नति के साथ फिर उठे विरोध के स्वर
डीएमई नियुक्ति पर विवाद गहराया: डॉ. अरुणा कुमार की पदोन्नति के साथ फिर उठे विरोध के स्वर
Bhopal
1.jpg)
मध्यप्रदेश की चिकित्सा शिक्षा प्रणाली एक बार फिर विवादों के केंद्र में है। डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन (DME) के पद पर डॉ. अरुणा कुमार की नियुक्ति को लेकर प्रदेशभर के मेडिकल संस्थानों में तीव्र विरोध शुरू हो गया है।
गांधी मेडिकल कॉलेज (GMC) से लेकर पूरे राज्य की मेडिकल यूनियनें इस फैसले के खिलाफ एकजुट हो चुकी हैं।
गुरुवार को जैसे ही सरकार द्वारा डॉ. अरुणा कुमार की पदोन्नति का आदेश सार्वजनिक हुआ, जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन (JUDA) और मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन (MTA) समेत अन्य चिकित्सा संगठनों ने विरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया।
विवादों का पुराना सिलसिला
डॉ. कुमार का प्रशासनिक करियर लगातार विवादों से घिरा रहा है। वर्ष 2000 से लेकर अब तक, जब-जब उन्हें कोई अहम पदभार सौंपा गया, तब-तब कर्मचारियों और छात्रों के विरोध का सामना करना पड़ा।
-
2000: सुल्तानिया अस्पताल में प्रमुख रहते हुए 25 से अधिक स्टाफ सदस्यों ने नौकरी छोड़ी।
-
2017-2018: नर्सिंग स्टाफ और छात्रों के प्रदर्शन के चलते डीन पद से हटना पड़ा।
-
2020: दोबारा डीन बनीं, लेकिन शिक्षकों से टकराव के चलते फिर से हटाया गया।
-
2023: बाला सरस्वती आत्महत्या प्रकरण के बाद विभागाध्यक्ष पद से हटाकर डीएमई में स्थानांतरित किया गया।
बाला सरस्वती प्रकरण: विरोध की जड़ में
31 जुलाई 2023 को GMC की थर्ड ईयर पीजी छात्रा बाला सरस्वती की आत्महत्या ने चिकित्सा शिक्षा जगत को झकझोर दिया था। सुसाइड नोट में 'थीसिस सबमिट न हो पाने' की पीड़ा और मानसिक दबाव का उल्लेख था। JUDA ने डॉ. कुमार को मानसिक प्रताड़ना के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए हड़ताल की थी, जिसके बाद उन्हें पद से हटाया गया।
फिर उसी कुर्सी पर वापसी, फिर विरोध भी तैयार
अब जबकि डॉ. अरुणा कुमार को डीएमई पद पर नियुक्त कर दिया गया है, विरोध एक बार फिर उभर कर सामने आ गया है। JUDA और MTA ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि यह आदेश रद्द नहीं किया गया तो प्रदेशभर में व्यापक आंदोलन होगा।
सवाल वही: पारदर्शिता और जवाबदेही
यह विवाद अब सिर्फ एक व्यक्ति की नियुक्ति तक सीमित नहीं रहा। यह चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था की पारदर्शिता, प्रशासनिक जवाबदेही और छात्रों-शिक्षकों के विश्वास की परीक्षा बन गया है। विरोध करने वाले संगठनों का कहना है कि ऐसे निर्णयों से शिक्षा और संस्थानों की विश्वसनीयता पर गहरा असर पड़ता है।