वास्तविक परिसंपत्तियों का टोकनाइजेशन: भारत के लिए वित्तीय क्रांति का द्वार

नई दिल्ली

दुनिया के वित्तीय बाज़ार अब एक ऐसी दिशा में बढ़ रहे हैं, जहाँ धन और संपत्ति का लेन-देन केवल कागज़ी दस्तावेज़ों या केंद्रीकृत प्रणालियों के माध्यम से नहीं होगा, बल्कि ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित होगा।

इस तकनीक के सबसे बड़े प्रयोग के रूप में उभर रहा है—वास्तविक परिसंपत्तियों (Real World Assets – RWAs) का टोकनाइजेशन

टोकनाइजेशन का अर्थ है—किसी भौतिक या वित्तीय संपत्ति (जैसे सोना, संपत्ति, बॉन्ड, शेयर या इनवॉइस) को डिजिटल टोकन के रूप में ब्लॉकचेन पर दर्ज करना। ये टोकन न सिर्फ उस संपत्ति पर स्वामित्व का अधिकार प्रदान करते हैं, बल्कि इन्हें आसानी से ट्रांसफर, खरीदा-बेचा और सेटल किया जा सकता है।


वैश्विक परिदृश्य: प्रयोग से वास्तविकता तक

कुछ साल पहले तक इसे केवल फिनटेक कंपनियों का प्रयोग माना जाता था। लेकिन 2025 तक तस्वीर बदल चुकी है—

  • 26 अरब डॉलर मूल्य की परिसंपत्तियाँ अब तक टोकनाइज हो चुकी हैं।

  • अगर इसमें फ़िएट-बैक्ड स्टेबलकॉइन शामिल करें तो यह आँकड़ा 295 अरब डॉलर तक पहुँच जाता है।

  • प्रमुख बैंक, एसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ और नियामक संस्थाएँ अब इसे अपनी मुख्य रणनीति में शामिल करने लगे हैं।

स्टेबलकॉइन इसका पहला बड़ा उदाहरण हैं। डॉलर और यूरो के डिजिटल संस्करणों ने न केवल अंतरराष्ट्रीय भुगतान आसान किया, बल्कि सीमा-पार व्यापार में भी लागत और समय घटाया। इसके बाद सबसे ज्यादा तेजी अमेरिकी ट्रेज़री बिल्स के टोकनाइजेशन में दिखी, जहाँ 2024 में ही 7 अरब डॉलर से अधिक की माँग रही।


सोना और रियल एस्टेट की नई शक्ल

कमोडिटी मार्केट में भी इस क्रांति की शुरुआत हो चुकी है।

  • Pax Gold और Tether Gold जैसे सोना-आधारित टोकन ने निवेशकों को एक क्लिक पर सुरक्षित, ट्रांसफरेबल गोल्ड तक पहुँच दिलाई। इनका मूल्य अब 1.7 अरब डॉलर से अधिक है।

  • रियल एस्टेट सेक्टर भी पीछे नहीं है। अमेरिका और यूरोप में ऐसे प्लेटफ़ॉर्म काम कर रहे हैं, जो बड़े-बड़े कमर्शियल प्रोजेक्ट्स को छोटे-छोटे डिजिटल हिस्सों में बदलकर रिटेल निवेशकों तक पहुँचा रहे हैं।


इक्विटी का टोकनाइजेशन: सबसे रोचक, सबसे चुनौतीपूर्ण

शेयर बाज़ार में टोकनाइजेशन की राह आसान नहीं है।

  • कुछ देशों में सिंथेटिक स्टॉक टोकन नियामकीय दबाव के चलते बंद हुए।

  • लेकिन यूरोप ने नियंत्रित वातावरण में इन्हें जगह दी। जर्मनी ने टेस्ला और एप्पल जैसे शेयरों को टोकनाइजेशन की अनुमति दी है, बशर्ते कड़े सुरक्षा मानक पूरे किए जाएँ।

  • अमेरिका में टोकनाइज्ड इक्विटी को मौजूदा सिक्योरिटीज़ कानून के दायरे में रहना पड़ता है, जिससे गति धीमी रही, लेकिन संस्थागत निवेशकों के लिए यह विकल्प खुला है।

इसका संकेत साफ है—जहाँ भी लागत और वितरण में लाभ है, वहाँ नियामक धीरे-धीरे रास्ता खोल रहे हैं।


भारत: शुरुआती कदम और भविष्य

भारत ने भी इस दिशा में अपने पहले कदम रख दिए हैं।

  • सेबी ने बेंगलुरु की एक फिनटेक कंपनी को इक्विटी टोकनाइजेशन का प्रयोग करने की अनुमति दी है। इस मॉडल में महँगे ब्लू-चिप शेयरों को छोटे-छोटे डिजिटल यूनिट्स में बाँटकर निवेशकों तक पहुँचाया जाएगा।

  • हर टोकन असली शेयर से जुड़ा होगा और एनएसडीएल/सीडीएसएल के रिकॉर्ड में दर्ज रहेगा।

  • इसका फायदा यह होगा कि आम निवेशक कुछ सौ रुपये लगाकर भी बड़ी कंपनियों के शेयरों का हिस्सा बन सकेंगे।

इसके अलावा—

  • एमएसएमई सेक्टर में इनवॉइस टोकनाइजेशन से छोटे कारोबारियों को कम ब्याज पर फंडिंग मिल रही है।

  • गिफ्ट सिटी में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टोकनाइज्ड बॉन्ड्स और सिक्योरिटीज़ पर पायलट प्रोजेक्ट चल रहे हैं।


अंतरराष्ट्रीय मॉडल से सबक

  • यूरोप: MiCA (Markets in Crypto Assets) नियमावली ने टोकनाइज्ड फंड्स और बॉन्ड्स को कानूनी ढाँचा दिया।

  • अमेरिका: जब नियामकीय रास्ता स्पष्ट हुआ, तो संस्थागत निवेशकों ने ट्रेज़री और क्रेडिट टोकनाइजेशन में बड़े पैमाने पर कदम रखा।

  • मध्य-पूर्व: दुबई और अबू धाबी जैसे केंद्र विदेशी पूंजी आकर्षित करने के लिए टोकनाइज्ड रियल एस्टेट को बढ़ावा दे रहे हैं।

  • सिंगापुर: प्रोजेक्ट गार्डियन के तहत बैंकों और नियामकों ने मिलकर एक साझा टोकनाइजेशन प्रोटोकॉल तैयार किया है।


भारत के सामने अवसर और चुनौतियाँ

अवसर

 निवेशकों की पहुंच और भागीदारी बढ़ेगी।
 शेयर बाज़ार में तरलता (Liquidity) सुधरेगी।
 निवेश और ट्रेडिंग की लागत घटेगी
 विदेशी निवेशकों के लिए भारत और आकर्षक बनेगा।

चुनौतियाँ

 अभी तक स्पष्ट क्रिप्टो नीति नहीं है।
 स्टेबलकॉइन से जुड़े नियम अधूरे हैं।
 तकनीकी ढाँचे और निवेशकों की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना होगा।


भारत की राह

वास्तविक परिसंपत्तियों का टोकनाइजेशन दुनिया भर में वित्तीय ढाँचे को बदल रहा है। भारत के पास मौका है कि वह इस बदलाव का नेतृत्व करे। सही नियामकीय स्पष्टता और टेक्नोलॉजी इकोसिस्टम के साथ यह न केवल घरेलू निवेशकों को नए अवसर देगा, बल्कि भारत को वैश्विक फिनटेक केंद्र बनाने में मदद करेगा।

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