पंजाब में आप में बगावत: 70 विधायकों ने नवनीत चतुर्वेदी का थामा साथ

चंडीगढ़

पंजाब की राजनीति में बड़ा राजनीतिक भूचाल देखने को मिला। आम आदमी पार्टी (आप) के कुल 92 विधायकों में से 70 ने पार्टी लाइन से हटते हुए जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवनीत चतुर्वेदी का समर्थन कर दिया। राज्यसभा उपचुनाव से ठीक पहले इस बगावत ने आप के भीतर गहराते मतभेदों को सार्वजनिक कर दिया है।

नवनीत चतुर्वेदी ने बीते सोमवार को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा उपचुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया था। शुरू में उनके साथ केवल 10 विधायक थे, लेकिन गुरुवार शाम तक यह संख्या बढ़कर 70 हो गई। पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशी राजिंदर गुप्ता के खिलाफ यह कदम आप की संगठनात्मक एकजुटता और नेतृत्व शैली पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में नवनीत चतुर्वेदी ने कहा —

“यह किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि पंजाब की जनता का समर्थन है। कई विधायक लंबे समय से असंतुष्ट हैं कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व राज्य के मुद्दों को गंभीरता से नहीं ले रहा। अब समय आ गया है कि पंजाब की आवाज संसद तक पहुंचे।”

पार्टी सूत्रों के अनुसार, कई विधायक इस बात से नाराज हैं कि अहम फैसले दिल्ली में लिए जाते हैं और पंजाब की स्थानीय आवाज को दरकिनार किया जाता है। उनका मानना है कि राज्यसभा में पंजाब के वास्तविक हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं को ही मौका मिलना चाहिए।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह घटना सिर्फ वोटिंग पैटर्न का नहीं, बल्कि भरोसे के संकट का संकेत है। 70 विधायकों का खुला समर्थन इस बात का प्रमाण है कि पार्टी में असंतोष अब सतह से गहराई तक पहुंच चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह विद्रोह केवल उपचुनाव तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पार्टी की पंजाब इकाई की स्थिरता पर दीर्घकालिक असर डाल सकता है।

दिल्ली में लगातार चुनावी पराजयों के बाद पंजाब को आप का सबसे मजबूत किला माना जा रहा था, जहां पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। लेकिन अब वही आधार कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। अगर 24 अक्टूबर को होने वाले राज्यसभा उपचुनाव में नवनीत चतुर्वेदी की जीत होती है, तो यह आम आदमी पार्टी के लिए बड़ा राजनीतिक झटका साबित होगा।

यह पहली बार नहीं है जब पार्टी में अंदरूनी मतभेद सामने आए हैं। वर्ष 2015 में योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की निष्कासन की घटना के बाद से पार्टी के भीतर सिद्धांत बनाम सत्ता की खींचतान लगातार बनी हुई है। पंजाब का मौजूदा संकट उसी पुराने तनाव का नया अध्याय माना जा रहा है।

एक ऐसी पार्टी, जिसने पारदर्शिता और जनता की आवाज के वादे के साथ राजनीति में प्रवेश किया था, अब खुद अपने ही निर्णयों और दिशा को लेकर सवालों के घेरे में है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या आम आदमी पार्टी इस आंतरिक संकट से उबर पाएगी, या फिर पंजाब की राजनीति में एक नई राजनीतिक धारा आकार लेगी।

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