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बीयर उद्योग में 20% पैकेजिंग संकट, 1300 करोड़ के नुकसान की आशंका
BUSINESS NEWS
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भारत की बीयर इंडस्ट्री इस समय एल्यूमीनियम कैन की भारी कमी का सामना कर रही है। ब्रूअर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (BAI) ने सरकार से अनुरोध किया है कि क्वालिटी कंट्रोल (BIS सर्टिफिकेशन) नियमों में अस्थायी राहत दी जाए, ताकि पैकेजिंग की कमी के चलते बीयर सप्लाई प्रभावित न हो।
20% उत्पादन पर असर, हजारों करोड़ का नुकसान संभव
रिपोर्ट्स के अनुसार, देश में हर साल लगभग 12 से 13 करोड़ 500 मिलीलीटर कैन की कमी हो रही है, जो बीयर की कुल बिक्री का करीब 20% हिस्सा है। इससे केंद्र और राज्य सरकारों को लगभग ₹1,200-1,300 करोड़ के राजस्व नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है।
BIS सर्टिफिकेशन बना नई चुनौती
1 अप्रैल 2025 से ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) सर्टिफिकेशन को एल्यूमीनियम कैन के लिए अनिवार्य किया गया है। यह कदम उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उठाया गया था, लेकिन अब बीयर और पेय उद्योग के लिए पैकेजिंग संकट बन गया है।
घरेलू सप्लायर जैसे BALL बेवरेज पैकेजिंग इंडिया और Can-Pack इंडिया पहले ही अपनी अधिकतम क्षमता पर काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि नई उत्पादन लाइन शुरू होने में कम से कम 6 से 12 महीने लग सकते हैं, जब तक वे सप्लाई नहीं बढ़ा पाएंगे।
आयात पर भी रोक का संकट
BIS प्रक्रिया की लंबी समयसीमा के कारण विदेशी सप्लायर्स से कैन आयात लगभग ठप हो गया है। इससे कंपनियों के पास सीमित विकल्प बचे हैं और सप्लाई चेन पर और दबाव बढ़ गया है।
BAI की दो प्रमुख मांगें सरकार से
ब्रूअर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, जो AB InBev, कार्ल्सबर्ग और यूनाइटेड ब्रूअरीज जैसी बड़ी कंपनियों का प्रतिनिधित्व करती है, ने सरकार के सामने दो प्रमुख मांगें रखी हैं—
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आयातित कैन पर BIS सर्टिफिकेशन की अनिवार्यता को अप्रैल 2026 तक स्थगित किया जाए।
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जिन विदेशी सप्लायर्स ने BIS सर्टिफिकेशन के लिए आवेदन किया है, उन्हें प्रक्रिया पूरी होने तक अस्थायी रूप से कैन आयात की अनुमति दी जाए।
उद्योग और रोजगार पर असर
यूनाइटेड ब्रूअरीज लिमिटेड (UBL) के CEO के अनुसार, “अब हमारी सबसे बड़ी चुनौती महंगाई नहीं, बल्कि पैकेजिंग सामग्री की कमी है।” भारत में बीयर सेक्टर में 55 से अधिक ब्रुअरीज हैं, जो करीब 27,000 लोगों को रोजगार देती हैं और लगभग ₹25,000 करोड़ का निवेश रखती हैं।
BAI का कहना है कि यदि यह स्थिति बनी रही तो असर केवल बीयर कंपनियों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि राज्य सरकारों के उत्पाद शुल्क राजस्व, किसानों, पैकेजिंग, लॉजिस्टिक्स और रिटेल सेक्टर तक दिखाई देगा।