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✍️ मैं समाचार पत्र हूँ, जी हाँ... मैं अखबार हूँ : श्री मदनमोहन गुप्त
Opinion

मैं एक समाचार पत्र हूँ — जी हाँ, मैं अखबार हूँ!
जड़ होकर भी चैतन्य हूँ, कागज़ का शरीर लेकर भी विचारों का वाहक हूँ। मेरी स्याही भले ही काली हो, पर उसकी चमक फौलाद से भी अधिक तेज़ है।
मुझमें राम की मर्यादा है, कृष्ण की मधुरता है, बुद्ध की शांति और मोहम्मद साहब का पैगाम भी समाया हुआ है। मैं न तो इतिहास हूँ और न ही भविष्य, मैं तो वर्तमान का आईना हूँ। हर सुबह लाखों लोग मुझमें अपनी शक्ल देखते हैं, अपने सपनों का नक्शा बनाते हैं।
मैं बनाता भी हूँ, और बिगाड़ता भी — पर न मैं खुदा हूँ, न खुदाई।
मैं तो उस मानवता की देन हूँ, जिसमें समाज खुद को पहचानता है, अपने पाप-पुण्य को तौलता है। मैंने चाणक्य देखे हैं, अरस्तु समझे हैं, और प्लेटो के विचारों को जनमानस तक पहुँचाया है।
मैं वही हूँ जिसमें आज भी पत्रकार दिन-रात खून-पसीना बहाते हैं — जो अपने प्रेम, आराम, नींद सब छोड़कर, जनसेवा में लगे रहते हैं। क्योंकि यह जुनून है — इंसान और इंसानियत की सेवा का।
मैं अखबार हूँ, मरकर भी नहीं मरता।
गीता की तरह मेरी आत्मा अमर है। मैं आंखों से होकर दिल में उतरता हूँ — दर्द, संघर्ष और उम्मीदों को शब्द देता हूँ।
आज मेरे जीवन के 52 साल पूरे हो रहे हैं।
दैनिक जागरण, जो आज देश के शीर्ष अखबारों में गिना जाता है, कभी एक छोटे से साप्ताहिक के रूप में स्वतंत्र नाम से प्रकाशित होता था। रीवा की पवित्र धरती से निकली यह ज्योति आज पंजाब से झारखंड तक लोगों का मार्गदर्शन कर रही है।
यह संभव हो पाया मेरे मार्गदर्शक, मेरे पिता गुरुदेव गुप्त जी, और उनके भाइयों श्री पूर्णचंद्र जी गुप्त और जयचंद्र जी आर्य की दूरदर्शिता और सेवा भावना से। उन्होंने रीवा और विंध्य के विकास को अपना जीवन समर्पित कर दिया।
आज मैं दैनिक जागरण हूँ — सत्य का दर्पण, भारतीयता की आवाज़।
मैंने देश के उतार-चढ़ाव देखे हैं, सत्ता बदलते देखी है, नेता बनते-बिगड़ते देखे हैं। पर मेरा धर्म सदा एक रहा — सत्य का पक्ष लेना। मेरी स्याही भारत माता की सेवा से सनी हुई है।
52 वर्षों की इस यात्रा में आपका स्नेह, विश्वास और साथ ही मेरी असली ताकत है।
मैं जब किसी गरीब की आवाज़ बनता हूँ, या किसी अत्याचारी का चेहरा उजागर करता हूँ, तब मैं महसूस करता हूँ कि मैं जीवित हूँ — और रहूँगा।
मैं आपका हूँ, आप मेरे।
मैं अखबार हूँ — एक आवाज़, एक आत्मा, एक संकल्प।