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रामायण की सीख: निराशा से बचें, उम्मीद न छोड़ें – हनुमान जी से सीखें सफलता का मंत्र
Jeevan Mantra

रामायण के सुंदरकांड में जब हनुमान जी सीता माता की खोज में लंका पहुंचे, तो यह कार्य जितना बाह्य रूप से साहसिक था, उतना ही आंतरिक रूप से धैर्य, विश्वास और जीवन प्रबंधन का पाठ भी सिखाने वाला था।
जब नहीं मिली सफलता, तो क्या किया हनुमान ने?
लंका पहुंचने के बाद हनुमान जी ने हर कोना छान मारा — महल, उद्यान, कक्ष, आंगन — लेकिन माता सीता का कोई पता नहीं चला। लंका का वातावरण राक्षसी विलासिता और भोग में डूबा था। हर जगह नशे में डूबे राक्षस, और अशोभनीय दृश्य।
एक क्षण ऐसा भी आया, जब हनुमान जी के मन में निराशा ने घर किया। उन्होंने सोचा — “यदि माता नहीं मिलीं तो क्या श्रीराम को बिना उत्तर लौट जाऊंगा?” यह वह क्षण था, जब कोई भी मनुष्य थक सकता है, रुक सकता है, हार मान सकता है।
लेकिन हनुमान ने थामा विश्वास का हाथ
हनुमान जी ने आंखें मूंदीं, और श्रीराम का ध्यान किया। उन्होंने अपनी आत्मा से संवाद किया और मार्गदर्शन मांगा। उसी क्षण उन्हें एक अलग महल दिखा, जहां एक मंदिर स्थित था — और यह स्थान विभीषण का घर था। रावण के अधर्ममय नगर में यह मंदिर आशा की किरण बना।
यह दृश्य जैसे संकेत दे रहा था — अंधकार कितना भी घना हो, उम्मीद की लौ बुझती नहीं है।
इसके बाद ही मिली सफलता
विभीषण के घर को देखने के बाद हनुमान जी के मन में नई ऊर्जा आई। उन्होंने प्रयास जारी रखा और अशोक वाटिका में अंततः माता सीता के दर्शन हुए। यह उनके प्रयास, विश्वास और श्रीराम के नाम में अटूट श्रद्धा का प्रतिफल था।
प्रसंग से सीख क्या मिलती है?
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निराशा का कोई स्थान नहीं: जब तक हम प्रयास करते हैं, तब तक हार नहीं होती।
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विश्वास और धैर्य: अंधेरे समय में भी सकारात्मक सोच और ईश्वर में आस्था आगे बढ़ने की दिशा दिखा सकती है।
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आत्मसंवाद: जब रास्ता न दिखे, तो बाहरी नहीं, अंदर की आवाज़ सुनें।
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अंतिम प्रयास भी निर्णायक हो सकता है: यदि हनुमान जी थककर लौट जाते, तो क्या माता सीता मिलतीं?
जीवन प्रबंधन का मंत्र:
हनुमान जी की यह कथा केवल धार्मिक नहीं, जीवन प्रेरणा का स्रोत है। असफलता के डर से रुकना नहीं है, बल्कि अंतिम सांस तक प्रयास करना है। तभी सफलता हाथ लगती है।