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सूना पर्व : जब राखी पर बहन की यादें बस तन्हा कर देती हैं दिल को
ओपीनियन - अनूप सक्सेना

रक्षा बंधन का त्योहार भाई-बहन के प्रेम और अपनत्व का सबसे प्यारा प्रतीक है। लेकिन क्या होता है जब यह त्योहार एक सूनेपन और विरह की भावना लिए आ जाए? सजल की कहानी कुछ ऐसी ही है, जो हर उस भाई की मनोदशा को बयां करती है, जिसकी बहन दूर कहीं व्यस्त हो, और राखी का त्योहार बस यादों का साया बनकर रह जाए।
सजल की व्यथा:
"दीदी, ये अच्छी बात नहीं है..." सजल के शब्द जैसे मन में कुंठा और तड़प लिए थे। वह बड़बड़ाते हुए सोच रहा था कि उसकी बहन राखी पर उसे याद तक क्यों नहीं करती। "घर आकर राखी बांधने के बजाय तुम अपने दोस्तों के साथ पिकनिक मना रही हो और फोटो भी शेयर कर रही हो। देखो न, मेरे सारे दोस्त रंग-बिरंगी राखियां बांधे हुए हैं, और तुम कहीं दूर..."
सजल की भावनाएं टूट रही थीं। उसे याद था वह मिठाई जो बहन ने पिछले साल लाई थी, और जिसे उसने अकेले ही खा लिया था। "अब वही मिठाई मेरे दोस्तों के साथ शेयर हो रही है, लेकिन मेरी बहन मुझे भूल गई है।"
पत्नी की चिंता:
सजल के बड़बड़ाने और आंखों की नमीयत को देखकर उसकी पत्नी ने उसे झकझोरते हुए कहा, "तुम क्या कर रहे हो नींद में? ये कैसी उदासी है तुम्हारे चेहरे पर? हर साल रक्षाबंधन पर तुम इसी तरह दुखी क्यों हो जाते हो?"
सजल ने धीरे-धीरे जवाब दिया, "मैं ठीक हूँ। तुम तो अपने भाई के घर जाकर राखी बांधो, मैं यहाँ अपने बचपन के वीडियो देखता हूँ। जब तुम वापस आओगी, तो कहीं बाहर चलकर खाना खाएंगे।"
नेहा की संवेदनशीलता:
नेहा ने सजल के उदास चेहरे को देखकर महसूस किया कि उसकी भावनाएं गहराई तक बह रही हैं। उसे पता था कि सजल वीडियो देखकर और ज्यादा भावुक हो जाएंगे। लेकिन उसने उनकी भावनाओं का सम्मान किया, क्योंकि वह जानती थी कि भाई-बहन का रिश्ता कितना गहरा और खास होता है।
उनकी बहन, जो अब सात समंदर पार है, अपनी जिंदगी में इतनी व्यस्त हो गई थी कि न तो देश आने का समय था और न ही भाई के साथ राखी बांधने का। बस अपनी यादें छोड़ गई थी, जिन्हें सजल हर रोज़ याद करता रहता है।
कहीं खो गया वो रेशमी धागा?
काश, सजल की बहन समझ पाती कि राखी सिर्फ एक राखी नहीं, बल्कि एक बंधन है, जो भावनाओं और अपनत्व का सच्चा प्रतीक है। काश वह समझ पाती कि उसके बिना ये पर्व सजल के लिए सूना, उदास और खालीपन से भरा है।
राखी का त्योहार जब रिश्तों की गर्माहट से महकता है तभी इसका असली सार उजागर होता है। इसलिए चाहे दूरी हो, व्यस्तता हो या कोई बाधा, इस दिन दिल से अपने भाई-बहन को याद करना चाहिए, ताकि ये पर्व सूना न रह जाए।
रक्षाबंधन की मिठास उन यादों और भावनाओं में छुपी होती है जो दिलों को जोड़ती हैं। सजल और उसकी बहन की कहानी हम सबको ये सिखाती है कि रिश्तों को समय देना, उन्हें निभाना और खासकर त्योहारों पर एक-दूसरे को याद करना कितना जरूरी होता है। तभी ये पर्व खुशियों से भरपूर और यादगार बन पाते हैं।
— अनूप सक्सेना