- Hindi News
- धर्म
- सत्यकथा: उदयपुर की ईडाणा माता – अग्निस्नान का अद्भुत रहस्य
सत्यकथा: उदयपुर की ईडाणा माता – अग्निस्नान का अद्भुत रहस्य
सत्यकथा

नवरात्रि का समय है, मां दुर्गा की आराधना और उत्सव से पूरा देश सराबोर है। जगह-जगह पंडाल सजे हैं, मंदिरों में भीड़ उमड़ रही है। इसी बीच राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित ईडाणा माता मंदिर हर साल अपने अनोखे चमत्कार के कारण चर्चा का केंद्र बन जाता है।
यहां हर वर्ष अग्निस्नान होता है। पूरा मंदिर परिसर आग की लपटों में घिर जाता है। चुनरी, प्रसाद, लकड़ी, बरगद के पत्ते तक राख हो जाते हैं। लेकिन माता की प्रतिमा—अग्नि की लपटों में होने के बावजूद—अक्षुण्ण रहती है। न केवल प्रतिमा, बल्कि माता का चेहरा और आभा भी अप्रभावित रहती है।
अरावली की गोद में बसा चमत्कारी धाम
उदयपुर शहर से करीब 60 किलोमीटर दूर, अरावली की ऊंची पहाड़ियों के बीच यह मंदिर स्थित है। खास बात यह है कि यहां किसी प्रकार का पक्का मंदिर परिसर नहीं है। माता की प्रतिमा खुले आसमान के नीचे, बरगद के विशाल पेड़ के नीचे विराजमान है।
मान्यता है कि जब माता प्रसन्न होती हैं या जब भक्तों की व्यथा उन पर अधिक भार डालती है, तब माता अग्निस्नान करती हैं। अग्निस्नान के समय आग अपने आप प्रकट होती है और चमत्कार की तरह अपने आप बुझ भी जाती है।
अग्निस्नान का मंजर
अग्निस्नान के दौरान वातावरण भक्तिमय और विस्मयकारी हो उठता है।
-
माता की चुनरी, त्रिशूल पर बंधे धागे, चढ़ा हुआ प्रसाद—सब राख हो जाते हैं।
-
मंदिर परिसर में मौजूद हर वस्तु जलकर खत्म हो जाती है।
-
किंतु माता की प्रतिमा पर आंच तक नहीं आती।
जो भक्त इस दृश्य के दर्शन कर लेते हैं, वे इसे जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य मानते हैं।
पांडवों और राजाओं की आस्था
किंवदंती है कि महाभारत काल में पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान यहां आए थे और माता की पूजा-अर्चना की थी। स्थानीय राजघरानों ने भी ईडाणा माता को अपनी कुलदेवी माना है। आज भी किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत माता के पूजन से ही की जाती है।
मान्यताएं और आस्थाएं
ईडाणा माता के धाम से जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित हैं—
-
यहां लकवा (पैरालिसिस) जैसी गंभीर बीमारियां भी माता की कृपा से ठीक हो जाती हैं।
-
संतान सुख से वंचित दंपति यहां झूला चढ़ाते हैं, जिससे उन्हें संतान की प्राप्ति होती है।
-
श्रद्धालु यहां लच्छा चुनरी और त्रिशूल चढ़ाकर अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की प्रार्थना करते हैं।
दक्षिणमुखी काली माता मंदिर से जुड़ा महत्व
ईडाणा माता मंदिर की ही तरह राजस्थान में एक और चमत्कारिक धाम है—सुजानगढ़ से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित दक्षिणमुखी काली माता का मंदिर। यह 850 फीट ऊंची पहाड़ी पर एक ही विशाल शिला पर बना हुआ है। यहां की मान्यता है कि यह मंदिर मंत्र-सिद्धि और साधना का प्रमुख केंद्र रहा है।
मंदिर के शिलालेख बताते हैं कि इसकी स्थापना 434 साल पहले हुई थी। खास बात यह है कि यहां भगवान गणेश की प्रतिमा उत्तरमुखी है और उसका पेट बाहर निकला हुआ नहीं है। नवरात्रि में यहां भी भारी भीड़ उमड़ती है और अष्टमी व नवमी को विशेष आयोजन होते हैं।
भंडारे की परंपरा
पिछले 9 वर्षों से मेघचंदन फाउंडेशन की ओर से साल में दो बार मंदिर के पास भंडारा आयोजित किया जाता है। वर्ष 2014 में पूर्व न्यायाधिपति करणी सिंह के पुत्र कुलदीप सिंह ने इसकी शुरुआत की थी। आज यह परंपरा भक्तों की सेवा और आस्था का प्रतीक बन चुकी है।
विज्ञान भी हैरान
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि ईडाणा माता के मंदिर में हर साल आग कैसे लगती है और कैसे बुझ जाती है? विज्ञान इसका कोई उत्तर नहीं दे पाया है। स्थानीय लोग कहते हैं कि यह माता का आशीर्वाद और शक्ति है, जो भक्तों को दर्शन देने आती हैं।
नवरात्रि के इस पावन अवसर पर ईडाणा माता का अग्निस्नान हमें यह सिखाता है कि आस्था और विश्वास की शक्ति सबसे बड़ी होती है। चाहे विज्ञान कुछ भी कहे, भक्तों के लिए यह एक अलौकिक चमत्कार है, जिसे देखना हर किसी के लिए जीवन का सौभाग्य है।