केदारनाथ के कपाट खुलने से पहले निकाली जाती है पंचमुखी डोली यात्रा, जानें इसका धार्मिक महत्व

Dharm Desk

भगवान शिव के प्रमुख धामों में से एक केदारनाथ मंदिर के कपाट इस वर्ष 2 मई 2025 को श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे। परंतु इससे पूर्व एकविशेष परंपरा का निर्वहन होता है, जिसे डोली यात्रा या पंचमुखी डोली यात्रा कहा जाता है। यह परंपरा न केवल सांस्कृतिक बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।


🔱 केदारनाथ धाम का गौरव

उत्तराखंड स्थित केदारनाथ धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह धाम हिमालय की गोद में बसा हुआ है और वर्ष में केवल छह महीने ही दर्शन के लिए खुलता है। मान्यता है कि यहाँ दर्शन मात्र से भक्तों के पाप कट जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।


🏔️ कपाट खुलने से पहले होती है पंचमुखी डोली यात्रा

जब शीतकाल में केदारनाथ के कपाट बंद हो जाते हैं, तो भगवान केदारनाथ की भोगमूर्ति को उखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में लाया जाता है। वहाँ छह माह तक पूजन-अर्चन के साथ भगवान विराजमान रहते हैं।

वसंत ऋतु आते ही जब कपाट पुनः खोलने की तिथि तय होती है, तब पंचमुखी डोली को विशेष पूजा-अर्चना के बाद उखीमठ से केदारनाथ धाम तक भव्य यात्रा के साथ ले जाया जाता है।


🌼 डोली यात्रा का महत्व

  • यह डोली भगवान शिव के पांच मुखों का प्रतीक होती है, जिसमें चांदी की भोगमूर्ति को विराजमान किया जाता है।

  • डोली यात्रा में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं और हर-हर महादेव के जयकारों से वातावरण गूंज उठता है।

  • डोली यात्रा के मार्ग में कई स्थानों पर भगवान केदारनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है।

  • यह यात्रा भक्तों के लिए केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि श्रद्धा, भक्ति और शिवत्व की अनुभूति होती है।


🗓️ चारधाम यात्रा 2025 का शेड्यूल

👉 30 अप्रैल 2025यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के कपाट खुलेंगे।
👉 2 मई 2025केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलेंगे।
👉 4 मई 2025बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलेंगे।

🔺 इस क्रम में सबसे पहले यमुनोत्री, फिर गंगोत्री, उसके बाद केदारनाथ और अंत में बद्रीनाथ के दर्शन किए जाते हैं।


🙏 आस्था और आंचलिक संस्कृति का अद्भुत संगम

डोली यात्रा न केवल उत्तराखंड की पारंपरिक सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करती है, बल्कि यह भक्तों को भगवान शिव के और अधिक निकट ले जाने का माध्यम भी है। यह यात्रा आस्था, भक्ति और प्रकृति की गोद में आत्मिक शांति की अनुभूति कराती है।


📌 नोट: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। पाठकों से अनुरोध है कि वे इन्हें श्रद्धा और विश्वास के साथ ग्रहण करें।

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