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सत्यकथा.. "जिसे समझाने निकली थी, उसी के हाथों जिंदगी गंवाई – एक प्रेम कहानी जो हत्याकथा बन गई"
Satyakatha

"नीम चाहे जितना भी मीठा करने की कोशिश करो, नीम तो नीम ही रहता है।" सरिता (बदला हुआ नाम) ने ये कहावत सुनी ज़रूर थी, पर शायद समझ नहीं पाई। उसे लगता था कि उसका प्यार एक अपराधी को इंसान बना देगा। लेकिन अफसोस! जो सपना उसने देखा था, उसी सपने ने उसका गला काट डाला।
यह कहानी है जबलपुर की एक पढ़ी-लिखी, सुंदर और आधुनिक सोच वाली युवती की, जो अपने पति और बेटी के होते हुए भी एक मोहल्ले के बदमाश से प्रेम कर बैठी और उसके सुधारक बनने की कोशिश में खुद मौत की नींद सो गई।
बरगी डेम पर एक चीख और खामोश लाश
25 मई 2025, शाम ढल रही थी। जबलपुर के बरगी डेम के पास बसे गांव बरबटी के लोग एक अबूझ सी बच्ची की चीखें सुन रहे थे। पहले किसी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब घंटे भर तक वह मासूम बच्ची “मम्मी… मम्मी…” कहती रही, तो कुछ ग्रामीणों ने जाकर देखा और खून से लथपथ एक खूबसूरत महिला को घायल हालत में पाया। पास में ही खड़ी थी उसकी तीन साल की बच्ची।
तुरंत खबर दी गई बरगी चौकी प्रभारी एसआई सरिता पटेल को। घायल महिला को मेडिकल कॉलेज पहुंचाया गया, ऑपरेशन हुआ, लेकिन दो दिन के भीतर 27 मई को वह जिंदगी की जंग हार गई। मरने से पहले उसने बता दिया था – “मुझे मेरे प्रेमी नमन ने मारा है…”
प्रेम से शुरू हुआ अपराध की ओर झुका रिश्ता
सरिता और नमन विश्वकर्मा के बीच का प्रेम प्रसंग कोई नया नहीं था। करीब डेढ़ साल से दोनों एक-दूसरे के बेहद करीब थे। सरिता के पति का सिविक सेंटर में पावभाजी का ठेला है, और वह दिन भर अपने काम में व्यस्त रहता था। खालीपन, अकेलापन और थोड़ी सी चकाचौंध की चाहत ने सरिता को नमन के नज़दीक ला दिया।
शुरुआत एक बाइक लिफ्ट से हुई थी, फिर कॉफी, फिर घूमना-फिरना और फिर शारीरिक संबंध। सरिता जानती थी कि नमन पर मारपीट के केस हैं, फिर भी उसे विश्वास था कि वह उसे बदल देगी। शायद यही सबसे बड़ी भूल थी।
जब प्यार ने लिया पजेसिवनेस का रूप
समय के साथ नमन सरिता से शादी की ज़िद करने लगा। लेकिन सरिता कभी भी पति और बेटी को छोड़ने को तैयार नहीं हुई। उसने नमन को टालने की कोशिश की, लेकिन नमन ने उसके घर पहुंचकर तोड़फोड़ की, पति से मारपीट की। इसके बाद सरिता ने उससे रिश्ता तोड़ लिया।
लेकिन नमन कौन मानने वाला था?
"अगर मेरी नहीं हो सकती, तो किसी और की भी नहीं होने दूंगा", इसी खतरनाक सोच के साथ 25 मई को वह सरिता को बरगी डेम ले गया – अंतिम बार बात करने के बहाने, और वहीं उस पर चाकू से हमला कर उसे मरा समझ कर भाग गया।
भागा, छिपा, फिर पकड़ा गया
हमले के बाद नमन जंगल में बाइक छुपाकर सिवनी भाग गया, फिर रायपुर। वहां एक लॉज में एक हफ्ते तक छुपा रहा। फिर 1 जून को जब अपनी बाइक लेने वापस बरगी डेम आया, तो पहले से सतर्क पुलिस ने उसे घेरकर गिरफ्तार कर लिया।
पुलिस पूछताछ में उसने शुरुआत में इंकार किया, लेकिन जब सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल लोकेशन सामने रखी गई, तो टूट गया। उसने बताया –
“मैं सरिता से शादी करना चाहता था, लेकिन वह मना कर रही थी, इसलिए मैंने उसे मार दिया।”
सरिता की कहानी: एक पतिव्रता, एक प्रेमिका और एक सुधारक
सरिता सिर्फ पत्नी या प्रेमिका नहीं थी, वह एक सुधारक भी बनना चाहती थी। मोहल्ले की महिलाओं ने उसे नमन के खिलाफ चेताया था, लेकिन उसे यकीन था कि उसका प्यार एक अपराधी को इंसान बना देगा।
पर जो होना था, वो हुआ।
आखिरी वक्त में अकेली
सरिता को आखिरी बार जब नमन मिला, तो उसने कहा – “चलो भाग चलते हैं।”
सरिता ने साफ मना किया, और फिर वहीं उसका कत्ल कर दिया गया।
उसकी मासूम बच्ची घंटों तक “मां… मां…” कहती रही, लेकिन उसकी मां अब कभी जवाब नहीं देगी।
कहानी का अंत, पर सबक अभी बाकी है
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सरिता का पति अब दूसरी जगह शिफ्ट होने की योजना बना रहा है।
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मासूम बच्ची मां के बिना है, और पिता की आंखों में शर्म, दर्द और पछतावा है।
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नमन जेल में है, लेकिन सवाल ये है – क्या वाकई किसी को सुधारा जा सकता है, जब वो खुद नहीं बदलना चाहता?
"कभी-कभी प्रेम ही सबसे बड़ा धोखा होता है – और सुधार की जिद, सबसे घातक भूल।"