- Hindi News
- राज्य
- मध्य प्रदेश
- मुस्लिम बुजुर्ग सुल्तान खान मां नर्मदा परिक्रमा पर निकले
मुस्लिम बुजुर्ग सुल्तान खान मां नर्मदा परिक्रमा पर निकले
Barwani, MP
छह बच्चों की शादी पूरी होने की मनोकामना सिद्ध होने पर गुरू पूर्णिमा से शुरू की यात्रा; पेंशन के सहारे अकेले कर रहे परिक्रमा
मध्यप्रदेश में धार्मिक सौहार्द और आस्था का एक प्रेरक उदाहरण सामने आया है। हरदा जिले के हंडिया तहसील के ग्राम अफगांव कला निवासी सुल्तान खान, जो मुस्लिम समाज से आते हैं, अपनी मनोकामना पूरी होने पर मां नर्मदा परिक्रमा पर निकल पड़े हैं। शनिवार को वे परिक्रमा मार्ग पर चलते हुए बड़वानी जिले के अंजड़ क्षेत्र पहुंचे, जहाँ परिक्रमा सेवा केंद्रों पर यात्रियों ने उनका सम्मानपूर्वक स्वागत किया। उनकी श्रद्धा और समर्पण परिक्रमा करने वालों के बीच चर्चा का विषय रहे।
कौन, क्या, कब, कहाँ, क्यों और कैसे — मुख्य तथ्य पहले
सुल्तान पिता दिलदार खान, निवासी अफगांव कला, जिला हरदा
मां नर्मदा परिक्रमा की पदयात्रा
पिछली पूर्णिमा यानी गुरू पूर्णिमा से शुरू
शनिवार को पहुंचे बड़वानी जिले के अंजड़ क्षेत्र
बच्चों की शादी की मनोकामना पूरी होने पर लिया गया प्रण
प्रतिमाह मिलने वाली 600 रुपये की पेंशन और रास्ते में उपलब्ध सेवाओं के सहारे यात्रा
अंजड़ में रुके, परिक्रमा सेवा केंद्र पर बना आकर्षण का केंद्र
नर्मदा परिक्रमा वासियों के लिए अंजड़ में बने सेवा केंद्र पर वे कुछ देर रुके, जहाँ चाय और विश्राम की व्यवस्था थी। सुल्तान खान को देखकर यात्रियों ने आश्चर्य के साथ सम्मान भी प्रकट किया। वे मुस्लिम समाज से होने के बावजूद पूरी निष्ठा से नर्मदा मैया के प्रति आस्था व्यक्त कर रहे हैं। इसके बाद वे नगर की भावसार धर्मशाला पहुँचे और आगे की यात्रा के लिए विश्राम किया।
सुल्तान खान ने बातचीत में कहा कि वे नमाज पढ़ते हैं, जमात में जाते हैं, लेकिन नर्मदा मैया से की गई मनोकामना पूरी होने पर इस परिक्रमा को निभाना उनका कर्तव्य है।
मनोकामना पूर्ण होने पर निभाया प्रण
सुल्तान खान मजदूरी कर परिवार का पालन करते रहे हैं। उनके सात बच्चे हैं। कई वर्षों तक बच्चों की शादियां न होने से वे परेशान रहे। इसी दौरान उन्होंने मां नर्मदा से संकल्प लिया कि जब बच्चों के विवाह हो जाएंगे, तो वे परिक्रमा पर निकलेंगे। अब सात में से छह बच्चों की शादी हो चुकी है और संकल्प निभाने के लिए उन्होंने पिछली पूर्णिमा से परिक्रमा शुरू कर दी। उम्र और ठंडे मौसम के बावजूद उनका उत्साह मार्ग में मिल रहे यात्रियों को प्रेरित करता है।
पूजा-विधि नहीं आती, फिर भी श्रद्धा से शामिल
उन्होंने कहा कि उन्हें आरती-पूजन की विधियां नहीं आतीं, लेकिन वे नर्मदा मैया के जयघोष के साथ यात्रा कर रहे हैं। जहाँ भी आरती-पूजन होता दिखाई देता है, वहाँ वह श्रद्धा से शामिल हो जाते हैं। परिक्रमा के दौरान वे भावपूर्ण भजन भी गाते हैं — “मैया मैं आज पूजा करने आया हूं…” — जिसे सुनकर यात्रियों में भावनात्मक संबंध और गहरा होता है।
पेंशन के सहारे कर रहे यात्रा, सेवा मिल रही साथ
सुल्तान खान ने बताया कि बच्चों ने आर्थिक सहायता करने में असमर्थता जताई, लेकिन मनोकामना पूरी होने के बाद उनके मन में परिक्रमा करने का संकल्प इतना दृढ़ था कि उन्होंने प्रतिमाह मिलने वाली 600 रुपये की पेंशन से ही यात्रा प्रारंभ कर दी। मार्ग में सेवा केंद्रों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले भोजन और पानी से उन्हें अत्यधिक सहयोग मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि यदि जीवन ने अवसर दिया, तो वे आगे भी परिक्रमा जारी रखना चाहेंगे।
यह कथा आज की ताज़ा ख़बरों, भारत समाचार अपडेट, धार्मिक सौहार्द और पब्लिक इंटरेस्ट स्टोरीज़ में अपनी अलग जगह बनाती है।
हमारे आधिकारिक प्लेटफॉर्म्स से जुड़ें –
🔴 व्हाट्सएप चैनल: https://whatsapp.com/channel/0029VbATlF0KQuJB6tvUrN3V
🔴 फेसबुक: Dainik Jagran MP/CG Official
🟣 इंस्टाग्राम: @dainikjagranmp.cg
🔴 यूट्यूब: Dainik Jagran MPCG Digital
📲 सोशल मीडिया पर जुड़ें और बने जागरूक पाठक।
👉 आज ही जुड़िए!
