मजदूर दिवस विशेष: जो अपने पसीने से देश की नींव को मजबूती देते हैं…

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1 मई को दुनिया भर में मजदूर दिवस मनाया जाता है — एक ऐसा दिन, जो उन अनदेखे हाथों को सम्मान देने के लिए समर्पित है जो ईंट से इमारत, बीज से खेत और कारखानों से उत्पादन तक हर उस धड़कते काम के पीछे खड़े होते हैं, जिन पर हमारी अर्थव्यवस्था टिकी है।

इतिहास की नींव पर खड़ा "मजदूर दिवस"

मजदूर दिवस की शुरुआत 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर से हुई थी, जहां काम के घंटे घटाकर 8 करने की मांग को लेकर हज़ारों मज़दूर सड़क पर उतरे थे। आंदोलन इतना व्यापक हुआ कि पुलिस फायरिंग तक हुई, लेकिन यह संघर्ष व्यर्थ नहीं गया। अंततः 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस घोषित किया गया। भारत में इसकी शुरुआत 1923 में चेन्नई (तब मद्रास) से हुई थी।

आज भी संघर्ष जारी है…

वक्त जरूर बदला है, लेकिन हालात पूरी तरह नहीं। आज भी देश के करोड़ों मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं — बिना पेंशन, बिना स्वास्थ्य बीमा, बिना न्यूनतम मजदूरी की सुरक्षा के। निर्माण स्थलों, फैक्ट्रियों, ईंट भट्ठों से लेकर घरेलू कामगारों तक, मजदूर आज भी शोषण और अनदेखी के शिकार हैं।

मेहनत की पहचान, अधिकारों की आवाज़

आज मजदूर दिवस सिर्फ छुट्टी का दिन नहीं, बल्कि उन अधिकारों की पुनः माँग का दिन है, जिन्हें अक्सर सुविधाजनक चुप्पी में दबा दिया जाता है। हर मज़दूर को सुरक्षित कार्य स्थल, समय पर वेतन, स्वास्थ्य सुविधाएं और सम्मानपूर्ण व्यवहार मिलना चाहिए — यही तो असली विकास है।

कहानी एक मज़दूर की — “रामभरोसे नहीं, मेहनत भरोसे”

रीवा जिले का रामभरोसे पिछले 20 साल से निर्माण कार्य कर रहा है। हर सुबह 6 बजे काम पर निकलता है, दोपहर की तेज़ धूप हो या सर्दी की कंपकंपाती हवा — वो कभी रुका नहीं। वह कहता है, “हमारी हालत का कोई हिसाब नहीं होता, लेकिन हमारा काम हर बड़ी इमारत में दिखता है।” रामभरोसे जैसे लाखों मजदूर ही देश की असली नींव हैं।

शुरूआती संघर्ष: शिकागो का हेमलेट मार्केट षड्यंत्र (1886)

  • अठारह सौ छैपचासी (1886) की शुरुआत
    अमेरिकी शहर शिकागो में उस समय औद्योगिक क्रांति अपने चरम पर थी। वहां के मिल-फैक्ट्रियों में मजदूर प्रतिदिन 10–12 घंटे काम करते थे, जबकि न्यूनतम मजदूरी और सुरक्षित कार्य-स्थल जैसी चाहतें दूर की कौड़ी थीं।

  • “Eight-Hour Day” (8 घंटे कार्य-दिवस) की मांग
    1 मई 1886 को हेमलेट मार्केट चौक पर हजारों मजदूरों ने 8 घंटे के कार्य-दिवस की मांग को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। इसके समर्थन में पूरे देश में हड़तालें शुरू हो गईं।

  • हेमलेट मार्केट हताहत
    4 मई 1886 को प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हिंसक संघर्ष हुआ, जिसमें कई लोग मारे गए और हज़ारों गिरफ्तार। इस घटना को Haymarket Riot/May Day Massacre कहा जाता है।


अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की घोषणा (1889–1891)

  • द्वितीय सोशलिस्ट इंटरनेशनल (1889)
    कांग्रे स्पेन में आयोजित हुआ, जहाँ पर अनेक देशों के लेबर नेताओं ने शिकागो की घटना को श्रमिकों के अधिकारों के प्रतीक के रूप में अपनाया। उन्होंने निर्णय लिया कि 1 मई को हर साल अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

  • पहला वैश्विक उत्सव (1890)
    सोशलिस्ट और ट्रेड यूनियां ने पहली बार 1 मई 1890 को विभिन्न यूरोपीय और अमेरिकी शहरों में परेड, रैलियाँ और सत्र आयोजित किए।


भारत में मजदूर दिवस का आगमन (1923)

  • मद्रास में पहला आयोजन
    1 मई 1923 को तत्कालीन मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में भारत की पहली मजदूर दिवस रैली आयोजित की गई। इसे भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) ने बुलाया था।

  • संगठनों का विस्तार
    जल्द ही बॉम्बे (मुंबई), कोलकाता, दिल्ली, हैदराबाद और अन्य उद्योग-नगरीय केंद्रों में भी इस दिन मजदूर रैलियाँ होने लगीं।

  • स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका
    भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मजदूर दिवस ने भी राष्ट्रीय नेताओं को श्रमिकों के अधिकारों पर खलिहानियों और औपनिवेशिक सरकार दोनों के खिलाफ खड़े होने का मंच दिया।

  • आधुनिक दौर और चुनौतियाँ

    आज भारत में करीब 50 करोड़ से अधिक श्रमिक 1 मई को वाणिज्यिक संस्थानों में अवकाश रखते हुए या सामूहिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर मनाते हैं। परन्तु असंगठित क्षेत्र के लाखों मज़दूर आज भी न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा व सुरक्षित कार्य-परिस्थितियों की लड़ाई लड़ रहे हैं।


 मजदूर दिवस की सीख:

"जो श्रम करता है, वही सृजन करता है। जो पसीना बहाता है, वही असली निर्माता है।"
मजदूर दिवस पर आइए, सिर्फ बातें न करें — श्रमिकों को सम्मान देने की शुरुआत अपने आस-पास से करें।

 

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