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"कट्टरपंथियों का अंत जरूरी: पहलगाम हमले पर मोहन भागवत का तीखा प्रहार"
JAGRAN DESK

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
उन्होंने इसे धर्म बनाम अधर्म की लड़ाई करार देते हुए कहा कि "ऐसे दुष्टों का वध होना ही चाहिए।"
भागवत मुंबई में आयोजित पंडित दीनानाथ मंगेशकर की 83वीं पुण्यतिथि पर एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने देश की सुरक्षा, आतंकी घटनाओं और समाज में व्याप्त कट्टरपंथ पर बेबाक राय रखी।
"धर्म पूछकर हत्या हिंदू नहीं करता"
संघ प्रमुख ने कहा, "हमारे यहां किसी का धर्म पूछकर उसे मारा नहीं जाता। लेकिन पहलगाम जैसी घटनाएं यह साबित करती हैं कि कुछ कट्टरपंथी तत्व अपने संप्रदाय के नाम पर घृणा फैलाते हैं।"
उन्होंने स्पष्ट किया कि यह किसी पंथ या धर्म की लड़ाई नहीं, बल्कि धर्म और अधर्म की टक्कर है।
"क्रोध है और अपेक्षा भी है"
मोहन भागवत ने भावुक होकर कहा, "इस हमले से देश का हर नागरिक आहत है। परिवारजनों के साथ हम भी दुखी हैं। लेकिन साथ ही, मन में क्रोध और अपेक्षा भी है... और मुझे लगता है यह अपेक्षा पूरी होगी।"
"असुरों का अंत अष्टभुजा शक्ति से ही संभव"
भागवत ने उदाहरण देते हुए कहा कि "रावण वेद-शास्त्रों का ज्ञाता था, लेकिन वह बदलने को तैयार नहीं था। जब तक वह अपने शरीर का परित्याग नहीं करता, तब तक तर्क से सुधरने वाला नहीं था। ऐसे लोगों का अंत आवश्यक है, तभी समाज सुरक्षित रहेगा।"
"देश को ताकतवर बनना होगा"
संघ प्रमुख ने सेना की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा, "अगर हम सोचें कि सेना की जरूरत नहीं है, तो 1962 की गलती दोहराई जाएगी। हमें हर स्तर पर सुरक्षा के लिए तैयार रहना होगा।"
उन्होंने कहा, "ऐसे दुष्टों का अंत होना जरूरी है ताकि फिर कोई भारत की ओर तिरछी नजर से देखने की हिम्मत न करे। और अगर देखे, तो उसकी आंख फूट जानी चाहिए।"
"संघ शक्ति का अर्थ है एकजुटता"
भागवत ने कहा, "कलियुग में ‘संघ शक्ति’ का मतलब है एकत्र होकर रहना। जब पूरा देश एकजुट होता है, तब दुश्मन की हिम्मत नहीं होती कि वह आंख उठाकर भी देखे। जात-पात, धर्म-सम्प्रदाय से ऊपर उठकर हमें राष्ट्रहित में खड़ा होना होगा।"
"ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं"
अंत में संघ प्रमुख ने कहा, "हमें ऐसी व्यवस्था बनानी होगी कि भविष्य में कोई पहलगाम जैसी घटना फिर न हो। उत्तर देना हमारी मजबूरी न बने, ऐसी स्थिति ही न बने—यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।"