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राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूर्ण: सीआरपीएफ ग्रुप केंद्र नई दिल्ली में देशभक्ति से सराबोर समारोह
Jagran Desk
सरदार पटेल की प्रतिमा के समक्ष हुआ आयोजन, उप महानिरीक्षक विनय कुमार सिंह ने कहा – ‘वंदे मातरम्’ राष्ट्र की एकता और समर्पण का प्रतीक है।
राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर शुक्रवार, 7 नवंबर 2025 को केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), ग्रुप केंद्र नई दिल्ली में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा के समक्ष देशभक्ति, एकता और राष्ट्रीय गर्व की भावना को सशक्त करने के उद्देश्य से संपन्न हुआ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता उप महानिरीक्षक श्री विनय कुमार सिंह ने की, जबकि इस अवसर पर कमांडेंट श्री विजय कुमार वर्मा, अन्य वरिष्ठ अधिकारी, अधीनस्थ अधिकारी, जवान तथा सीआरपीएफ कैंप झड़ौदा कलां स्थित केंद्रीय विद्यालय के शिक्षकगण और छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
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समारोह की शुरुआत और ऐतिहासिक परिचय
कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रीय गान के साथ सैल्यूट देकर की गई। तत्पश्चात ‘वंदे मातरम्’ के ऐतिहासिक महत्व पर विस्तृत जानकारी दी गई। अधिकारियों ने बताया कि ‘वंदे मातरम्’ शब्द का अर्थ “माँ, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ” है, जो मातृभूमि के प्रति समर्पण, श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है। इस अवसर पर उपस्थित सभी जवानों, अधिकारियों और विद्यार्थियों को इस गीत के उद्गम, अर्थ और स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका से अवगत कराया गया।
देशभक्ति से ओतप्रोत संबोधन
अपने संबोधन में उप महानिरीक्षक विनय कुमार सिंह ने कहा कि “राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ हमें राष्ट्र के प्रति समर्पण, त्याग और एकता का संदेश देता है। यह रचना स्वतंत्रता सेनानियों की प्रेरणा रही है और आज भी यह हमारी राष्ट्रीय पहचान का स्थायी प्रतीक है।”
उन्होंने आगे कहा कि यह गीत हर भारतीय को देश निर्माण में अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करता है। सिंह ने केंद्रीय विद्यालय के शिक्षकों और विद्यार्थियों से भी देशभक्ति की भावना को नई पीढ़ी में सुदृढ़ करने का आह्वान किया।
उल्लासपूर्ण समापन
कार्यक्रम का समापन पुनः राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ के सामूहिक गायन के साथ हुआ। पूरे आयोजन स्थल पर देशभक्ति और उल्लास का वातावरण व्याप्त रहा। जवानों और विद्यार्थियों की उत्साहपूर्ण भागीदारी ने समारोह को ऐतिहासिक बना दिया।
यह आयोजन केवल एक स्मरण नहीं, बल्कि उस भाव का पुनर्स्मरण था जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा दी थी।
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