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"जिनके लिए रोटी सपना है: विश्व भूख दिवस 2025 पर विशेष"
Opinion

जब पेट में अन्न न हो और आंखों में जीवन की आशा बुझ रही हो, तब भूख सिर्फ एक शारीरिक जरूरत नहीं रह जाती — वह एक पीड़ा बन जाती है।
दुनियाभर में करोड़ों लोग हर दिन इसी पीड़ा से गुजरते हैं। कोई बुजुर्ग है, कोई बीमार, कोई अनाथ या बेसहारा, लेकिन एक चीज सबमें समान है — भूख। दो वक्त की रोटी, जो कईयों के लिए सामान्य है, वही किसी के लिए एक सपना बन जाती है।
आज की दुनिया में तकनीक, विज्ञान, और अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, लेकिन एक बुनियादी सवाल अब भी वहीं है — "क्या सभी को भरपेट भोजन मिल पा रहा है?" दुर्भाग्यवश, जवाब है — नहीं।
भूख की मार, इंसान की हार
जब हमारे चारों ओर स्वादिष्ट भोजन की बहार होती है, हम अक्सर भूल जाते हैं कि दूसरी ओर कोई रोटी के एक टुकड़े के लिए तरस रहा है। जो भोजन हम बचा लेते हैं या फेंक देते हैं, वही किसी के लिए जीवनदान हो सकता है। भारत, जो कृषि प्रधान देश है, आज भी वैश्विक खाद्य अपशिष्ट सूची में दूसरे स्थान पर आता है।
यूएनईपी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 78 मिलियन टन से अधिक भोजन बर्बाद होता है, जबकि देश की बड़ी आबादी भूख और कुपोषण से जूझ रही है। यह आंकड़ा न केवल चिंताजनक है, बल्कि हमारी सामूहिक असंवेदनशीलता को भी दर्शाता है।
भूख: एक सार्वभौमिक पीड़ा
भूख अमीर-गरीब, जाति-धर्म, रंग-रूप, या देश की सीमाओं को नहीं देखती। यह एक सार्वभौमिक तड़प है, जो हर इंसान को एक समान रूप से प्रभावित करती है। लेकिन फिर भी, कुछ के थालों में व्यंजन की भरमार होती है, जबकि कई खाली पेट ही सोने को मजबूर होते हैं।
2024 के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत का स्थान 105वां है, जो यह दर्शाता है कि यहां "भूख" अब भी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, भारत में पाँच साल से कम उम्र के 35.5% बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।
भूख से मौत तक का सफर
दुनिया में हर साल 9 मिलियन लोग भूख से मर जाते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में छोटे बच्चे शामिल हैं। कई देशों में जैसे हैती, लोग मिट्टी से बनी रोटियां खाते हैं ताकि पेट की आग शांत कर सकें। यह केवल खाद्य असमानता नहीं, बल्कि एक वैश्विक मानवीय संकट है।
सेव द चिल्ड्रेन के अनुसार, 2024 में लगभग 18.2 मिलियन बच्चे भूख की स्थिति में जन्मे — यानी हर मिनट 35 बच्चे। यह आंकड़े किसी युद्ध या महामारी से कम नहीं।
भारत की असमानता: अमीरी की चोटी, गरीबी की खाई
ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि भारत के शीर्ष 5% लोगों के पास 60% से अधिक संपत्ति है, जबकि निचले 50% की आय में लगातार गिरावट आई है। एक तरफ अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है, दूसरी ओर भूखे लोगों की तादाद भी।
भारत में उत्पाद शुल्क और जीएसटी जैसे करों का सीधा असर गरीबों की थाली पर पड़ता है। 2024 में भारत में 204 नए अरबपति बने, लेकिन वहीं भूख से जूझ रही आबादी 350 मिलियन तक पहुंच गई है।
क्या है इस वर्ष की थीम?
विश्व भूख दिवस 2025 की थीम है: "हर कोई खाने का हकदार है", जो इस बात पर ज़ोर देती है कि भोजन केवल सुविधा नहीं, बल्कि हर व्यक्ति का मूल अधिकार है।
यह हमें याद दिलाता है कि पौष्टिक आहार तक पहुंच सभी के लिए सुनिश्चित करना अब अनिवार्य है।
भविष्य की ओर: एक उम्मीद की किरण
संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक दुनिया से भूख को खत्म करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन कंसर्न वर्ल्डवाइड के अनुसार, यदि वर्तमान गति जारी रही तो यह लक्ष्य 2160 तक ही संभव हो पाएगा।
हमारे लिए यह समय है कि हम न केवल खुद के खाने की चिंता करें, बल्कि उन करोड़ों लोगों के लिए भी सोचें जो इस पल भी भूखे हैं। अगर हर व्यक्ति केवल अपनी प्लेट से आधा भोजन भी बचाकर किसी ज़रूरतमंद को दे, तो भूख मिटाना कोई असंभव कार्य नहीं।
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भूख कोई आंकड़ा नहीं, एक अहसास है — जिसे हमने महसूस नहीं किया, इसका मतलब यह नहीं कि वह कहीं हो नहीं रहा।
जब तक हम सब मिलकर "हर पेट तक अन्न" पहुंचाने की जिम्मेदारी नहीं लेंगे, तब तक यह लड़ाई अधूरी ही रहेगी।
भूख की तड़प को समझना ही पहला कदम है, उसे मिटाना हमारा कर्तव्य।
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