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"हम मंदिर की आरती में उड़ती खुशबू हैं – कैसे मिटाओगे हमें?"
Opinion

"नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुतः॥"
श्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक केवल शब्द नहीं, आत्मा की अमरता का दिव्य सत्य है। इसे न कोई अस्त्र काट सकता है, न अग्नि जला सकती है। न जल इसे भिगो सकता है, न वायु सुखा सकती है।
तो फिर तुम, जो आत्मा को धुएं और बारूद से मिटा देना चाहते हो, किस भ्रम में जी रहे हो? यह आत्मा अजर है, अमर है, अविनाशी है। हम शरीर हैं, पर आत्मा भी हैं। अगर हमारे शरीर पर वार हुआ, तो भी हमारी आत्मा लड़ती रहेगी। हमारे घावों से खून बहेगा, पर हमारे कदम नहीं रुकेंगे।
तुम गोली चलाओगे, हम गोली सहकर भी चलेंगे। तुम सोचते हो कि तुम तय करोगे कि कौन जिए और कौन मरे? तुम ये अधिकार लेना चाहते हो जो केवल ईश्वर को है? तो सुन लो—हमारी साँसों की डोर तुम्हारी बंदूकों से नहीं, परमात्मा के हाथों से बंधी है।
तुम्हारी नफरत की आग एक दिन इतनी प्रचंड हो जाएगी कि उसी में तुम स्वयं जल जाओगे। और हम? हम जानते हैं भस्मासुर का अंत कैसे होता है—हम विष्णु के वंशज हैं।
हम नहीं मिटेंगे।
क्योंकि हम मंदिर की आरती में उठने वाली महक हैं, कैसे कोई खुशबू को कैद कर सकता है? हम उन दीयों की लौ हैं, जिनसे प्रकाश फूटता है। तुम कैसे बुझाओगे इसे?
हम कृष्ण हैं। बस इंतज़ार कर रहे हैं शिशुपाल की सौ गालियों के पूरे होने का।
हम ईश्वर के बच्चे हैं। किसी के अस्तित्व को नकारना हमारा धर्म नहीं।
हम तो चींटी को भी नहीं कुचलते।
साँप को भी दूध पिलाने का जज़्बा रखते हैं।
जीवन हमारे लिए नष्ट करने की चीज़ नहीं, वो परमात्मा का उपहार है।
और उसका अंत? वो किसी "विचारधारा" से तय नहीं होता—वो ईश्वर की मर्ज़ी से होता है।
तुम परमात्मा मत बनने की कोशिश करो, वरना पृथ्वी का संतुलन डगमगा जाएगा।
तलवारें सबके पास हैं, लेकिन साहस और करुणा केवल कुछ के पास।
क्योंकि…
"चमन में इख़्तिलात-ए-रंग-ओ-बू से बात बनती है
हम ही हम हैं तो क्या हम हैं, तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो!"
जय हिंद।