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तीन छुपी आदतें जो इंसान को मानसिक अंधकार की ओर खींचती हैं
Dharm
भगवद गीता के 16वें अध्याय में श्रीकृष्ण ने पहले ही दे दी थी चेतावनी
आधुनिक जीवन की भागदौड़ में इंसान अक्सर छोटी आदतों की अनदेखी कर देता है, जो धीरे-धीरे उसे मानसिक और आध्यात्मिक संकट में धकेल देती हैं। भगवद गीता के 16वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने तीन ऐसी आदतों का जिक्र किया है, जिन्हें उन्होंने ‘नरक के द्वार’ कहा है।
अत्यधिक इच्छाएं और लालसा
जीवन में प्रेरणा के लिए इच्छाएं जरूरी हैं, लेकिन जब ये बेकाबू हो जाएँ, तो इंसान अपने नैतिक मूल्यों और विवेक को भूल जाता है। बड़ी संपत्ति, महंगी वस्तुएं या तकनीकी गैजेट्स का पीछा करने से मानसिक संतुलन बिगड़ता है और व्यक्ति लगातार असंतोष की भावना में फंस जाता है।
क्रोध और मानसिक अशांति
गुस्सा केवल तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं है। यह सोचने-समझने की क्षमता को प्रभावित करता है और रिश्तों व कार्यक्षेत्र में गलत फैसलों का कारण बनता है। विशेषज्ञों के अनुसार, संयम और धैर्य ही ऐसे समय में सुरक्षा कवच का काम करते हैं।
लोभ और संतोष की कमी
जब इंसान कभी संतुष्ट नहीं होता और हमेशा ‘और पाने’ की चाह में रहता है, तो यह उसकी आत्मा को जकड़ लेता है। लोभ वर्तमान पल का आनंद छीन लेता है और सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों में दूरी पैदा करता है।
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