छत्तीसगढ़ सरकार ने सरेंडर नक्सलियों के मामलों को वापस लेने का फैसला किया

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जिला-स्तरीय कमेटी करेगी निगरानी, 14 कानूनों में संशोधन के साथ जन विश्वास विधेयक-2025 लागू

छत्तीसगढ़ सरकार ने बुधवार को कैबिनेट की बैठक में निर्णय लिया कि सरेंडर करने वाले नक्सलियों के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामले वापस लिए जाएंगे। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस प्रक्रिया के लिए जिला-स्तरीय कमेटी और कैबिनेट उप-समिति बनाने की मंजूरी भी दी गई। सरकार ने यह कदम नक्सल हिंसा छोड़ने वाले व्यक्तियों को प्रोत्साहित करने और समाज में उनका सहज समावेश सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उठाया है।

सरेंडर करने वाले नक्सलियों के खिलाफ केस वापस लेने की प्रक्रिया को जिला-स्तरीय समिति मॉनिटर करेगी। यह समिति संबंधित मामलों की रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय को सौंपेगी। इसके बाद कानून विभाग की राय लेकर प्रस्ताव कैबिनेट उप-समिति के सामने रखा जाएगा। उप-समिति द्वारा चयनित मामलों को अंतिम मंजूरी के लिए कैबिनेट में पेश किया जाएगा। केंद्रीय कानूनों या केंद्र से जुड़े मामलों में भारत सरकार से अनुमति ली जाएगी। अन्य मामलों में जिला मजिस्ट्रेट के माध्यम से केस वापस लेने की कार्रवाई की जाएगी।

कैबिनेट ने जन विश्वास विधेयक-2025 (द्वितीय संस्करण) को भी मंजूरी दी। इस विधेयक के तहत 11 विभागों के 14 अधिनियमों के 116 प्रावधानों में संशोधन किया जाएगा। इसका उद्देश्य छोटे उल्लंघनों पर त्वरित प्रशासनिक कार्रवाई और आसान समाधान सुनिश्चित करना है। सरकार का मानना है कि इससे ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और ईज ऑफ लिविंग में सुधार होगा। छत्तीसगढ़ इस विधेयक का दूसरा संस्करण लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन रहा है।

साथ ही, कैबिनेट ने 2025–26 के लिए प्रथम अनुपूरक अनुमान (Supplementary Estimate) को भी स्वीकृति दी, जिसमें विभिन्न विभागों के बजट संशोधन और नई योजनाओं की वित्तीय व्यवस्था शामिल होगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि नक्सलियों के मामलों को वापस लेने का यह कदम न केवल उनके पुनर्वास को मजबूत करेगा, बल्कि राज्य में सुरक्षा और निवेश के वातावरण को भी बेहतर बनाएगा। जिला-स्तरीय कमेटियों के माध्यम से प्रक्रिया पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से संचालित की जाएगी।

पिछली कैबिनेट बैठकों में लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों में मुफ्त बिजली योजना, निजी विश्वविद्यालय संशोधन और दुकान-स्थापना संशोधन शामिल थे। इन पहलों का उद्देश्य रोजगार, शिक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में सुधार को बढ़ावा देना है।

सरकार का यह कदम नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति स्थापित करने और सामाजिक समावेश की दिशा में बड़ा प्रयास माना जा रहा है।

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