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अयोध्या के महंत राजू दास का भूपेश बघेल पर तीखा हमला, बोले— ‘रावण का दूसरा रूप’
छत्तीसगढ़
भिलाई की हनुमंत कथा से गरमाई राजनीति, साधु-संतों और सनातन पर बयानबाज़ी को बताया आस्था पर प्रहार
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और धार्मिक कथावाचकों को लेकर जारी बयानबाज़ी ने रविवार को नया मोड़ ले लिया। अयोध्या के हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास ने भिलाई में आयोजित हनुमंत कथा के दौरान भूपेश बघेल पर तीखा हमला बोलते हुए उन्हें “रावण का दूसरा रूप” बताया। उनके इस बयान के बाद राज्य की राजनीति और धार्मिक हलकों में हलचल तेज हो गई है।
महंत राजू दास ने कहा कि भूपेश बघेल की भाषा, सोच और कार्यशैली सनातन संस्कृति के मूल्यों के खिलाफ रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि जब मिशनरियों द्वारा चलाया जा रहा धर्मांतरण का सिलसिला रुका, तब कुछ राजनीतिक नेताओं को साधु-संत और कथावाचक “बीजेपी के एजेंट” नजर आने लगे। महंत ने कहा कि एक पूर्व मुख्यमंत्री से इस तरह की टिप्पणी न केवल अशोभनीय है, बल्कि समाज को बांटने वाली भी है।
यह विवाद उस समय और गहराया, जब भूपेश बघेल ने हाल ही में कथावाचक पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और पं. प्रदीप मिश्रा को बीजेपी का एजेंट बताते हुए उन पर अंधविश्वास फैलाने के आरोप लगाए थे। इसी बयान के जवाब में महंत राजू दास ने रावण का उदाहरण देते हुए कहा कि रावण विद्वान और शिवभक्त था, लेकिन उसके कर्म सनातन संस्कृति के विनाश की ओर ले जाने वाले थे। उन्होंने कहा कि केवल जन्म या पृष्ठभूमि नहीं, बल्कि कर्म किसी व्यक्ति की पहचान तय करते हैं।
महंत ने यह भी कहा कि संतों और धार्मिक कथावाचकों पर टिप्पणी करना केवल व्यक्तियों का अपमान नहीं है, बल्कि करोड़ों सनातन श्रद्धालुओं की आस्था पर सीधा प्रहार है। उनका कहना था कि साधु-संत किसी राजनीतिक दल के लिए नहीं, बल्कि समाज के पीड़ित और जरूरतमंद लोगों के लिए कार्य करते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर लोगों के दुख दूर करना राजनीति है, तो फिर समाज सेवा की परिभाषा क्या होगी।
इस बयानबाज़ी के बीच छत्तीसगढ़ की राजनीति में भी प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने भूपेश बघेल के बयान को सनातन और बागेश्वर धाम का अपमान बताया, जबकि उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने कांग्रेस पर सनातन विरोधी मानसिकता का आरोप लगाया। दूसरी ओर, कांग्रेस नेताओं ने बघेल के समर्थन में बयान देते हुए इसे विचारों की लड़ाई करार दिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि धार्मिक आयोजनों और कथावाचकों को लेकर बयान अब केवल आस्था तक सीमित नहीं रहे, बल्कि वे सीधे सियासी विमर्श का हिस्सा बन गए हैं। आने वाले दिनों में यह विवाद और तेज हो सकता है, क्योंकि दोनों पक्ष अपने-अपने समर्थकों के बीच संदेश मजबूत करने में जुटे हैं।
फिलहाल, भिलाई की हनुमंत कथा से शुरू हुआ यह बयान युद्ध छत्तीसगढ़ की राजनीति में धर्म और राजनीति के रिश्ते पर नई बहस छेड़ता दिख रहा है।
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