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शादी की छुट्टी बनी सजा, 9 साल बाद हाईकोर्ट से मिला इंसाफ – अब फिर से मिलेगी नौकरी
बालोद, छत्तीसगढ़।

शादी के लिए ली गई छुट्टी जिंदगी की सबसे बड़ी सजा बन जाएगी, ये राजेश देशमुख ने कभी नहीं सोचा था।
बालोद जिला न्यायालय में भृत्य के पद पर कार्यरत रहे राजेश को केवल तीन दिन की अतिरिक्त छुट्टी लेने के कारण नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। लेकिन लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उन्हें न्याय दिया है। कोर्ट ने जिला न्यायालय को आदेश दिया है कि देशमुख को 50% एरियर वेतन के साथ सेवा में पुनः बहाल किया जाए।
शादी के बाद तीन दिन की देरी, और छिन गई नौकरी
यह मामला साल 2016 का है, जब राजेश देशमुख बालोद जिला न्यायालय में परीवीक्षा अवधि में भृत्य के पद पर कार्यरत थे। उसी वर्ष उनकी शादी तय हुई, जिसके लिए उन्होंने सात दिन का वैध अवकाश लिया। विवाह संपन्न होने के बाद राजेश निर्धारित अवधि से तीन दिन देरी से कार्यालय लौटे। इसे ‘अनाधिकृत अनुपस्थिति’ मानते हुए विभाग ने उनकी सेवा समाप्त कर दी।
नोटिस का जवाब दिया, फिर भी नहीं हुई सुनवाई
राजेश को इस संबंध में विभाग द्वारा नोटिस भेजा गया, जिसका उन्होंने समय पर जवाब भी दिया। लेकिन विभाग ने उनकी सफाई को अस्वीकार करते हुए जांच की प्रक्रिया अपनाए बिना ही बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया। इसी अन्याय के खिलाफ राजेश ने हाईकोर्ट का रुख किया।
हाईकोर्ट में याचिका, न्याय की उम्मीद
मामला जब जस्टिस संजय श्याम अग्रवाल की अदालत में पहुंचा, तो याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने दलील दी कि भले ही कर्मचारी प्रोबेशन पर हो, लेकिन उसे सेवा से हटाने से पहले उचित जांच और सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है। बिना जांच के हटाना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
न्याय की जीत: हाईकोर्ट ने बहाल करने का दिया आदेश
सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने राजेश देशमुख के पक्ष में फैसला सुनाते हुए बालोद जिला न्यायालय को निर्देश दिया कि वह उन्हें 50 प्रतिशत पिछले वेतन के साथ तत्काल सेवा में बहाल करे।
यह फैसला क्यों है महत्वपूर्ण?
यह फैसला केवल राजेश देशमुख के लिए नहीं, बल्कि उन सभी कर्मचारियों के लिए एक मिसाल है जो सिस्टम की मनमानी का शिकार हो जाते हैं। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि प्रोबेशन में भी कर्मचारियों के अधिकार सुरक्षित हैं और बिना प्रक्रिया के किसी को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता।