विद्यार्थियों में एकाग्रता और कल्पनाशीलता जगाता है संगीत: पं. शंकर भट्टाचार्य

BHOPAL, MP

स्पिक मैके के पांच दिवसीय आयोजन में भोपाल के विभिन्न संस्थानों में दीं शास्त्रीय प्रस्तुतियाँ

प्रख्यात सरोद वादक पंडित शंकर भट्टाचार्य का मानना है कि शास्त्रीय संगीत केवल आत्मा को छूने वाला माध्यम नहीं, बल्कि यह विद्यार्थियों की एकाग्रता, कल्पनाशक्ति और मानसिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा, "बचपन से ही अगर बच्चों को संगीत की शिक्षा दी जाए, तो वे मानसिक रूप से अधिक सशक्त और रचनात्मक बनते हैं। यही कारण है कि मुझे शिक्षण संस्थानों में प्रस्तुति देने में विशेष आनंद आता है।"

पंडित भट्टाचार्य ने पीएम श्री जवाहर नवोदय विद्यालय, रातीबड़ में सरोद की आकर्षक प्रस्तुति दी, जो राग दुर्गा पर आधारित थी। प्रस्तुति के बाद उन्होंने विद्यार्थियों को भारतीय शास्त्रीय संगीत की विविध विधाओं से परिचित कराया। उनकी प्रस्तुति से छात्र-छात्राएं न केवल मंत्रमुग्ध हुए, बल्कि उन्होंने भारी तालियों के साथ पंडितजी का अभिवादन भी किया।

यह कार्यक्रम स्पिक मैके भोपाल चेप्टर के तत्वावधान में आयोजित पांच दिवसीय शास्त्रीय संगीत श्रृंखला का हिस्सा था, जो 24 अप्रैल से 28 अप्रैल तक भोपाल के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में आयोजित की गई। पंडित शंकर भट्टाचार्य के साथ तबले पर प्रख्यात वादक पं. अजय कुलकर्णी ने संगत की, जिसने संगीत में चार चांद लगा दिए।

इस दौरान पंडित भट्टाचार्य ने 7 हिल्स स्कूल, मौलाना आज़ाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, पीएम श्री नवोदय विद्यालय (श्यामपुर और रातीबड़), तथा मध्यांचल यूनिवर्सिटी, रातीबड़ में शास्त्रीय प्रस्तुतियाँ दीं। छात्रों ने संगीत के प्रति उत्साह दिखाते हुए अनेक जिज्ञासाएँ प्रकट कीं, जिनका समाधान पंडितजी ने बड़े सहज और ज्ञानवर्धक ढंग से किया।

पंडितजी ने राग किरवानी, मल्हार, अहीर भैरव, कलाश्री और दुर्गा जैसे रागों की प्रस्तुति आलाप, जोड़ और झाला के साथ दी। उन्होंने विभिन्न तालों जैसे तीनताल, रूपक, झपताल, द्रुत और अति द्रुत में सरोद की गतों का ऐसा संयोजन प्रस्तुत किया, जिसे श्रोताओं ने देर तक याद रखा। पं. अजय कुलकर्णी की तबला संगत ने इस संगीत रचना को और भी भावपूर्ण बना दिया।

पंडित शंकर भट्टाचार्य का कहना है कि वे प्रस्तुति के दौरान मंच पर पहुंचकर ही यह तय करते हैं कि क्या बजाना है। उनका मानना है कि माहौल, समय और मन:स्थिति के अनुसार स्वतः प्रेरित होकर संगीत की रचना होती है। तबलावादक को भी वे उसी क्षण गत बताते हैं, जिससे प्रस्तुति में नवाचार बना रहता है और हर बार कुछ नया रचा जाता है।

17 देशों में दे चुके हैं प्रस्तुति

सरोद वादन के क्षेत्र में पंडित भट्टाचार्य का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मानित है। वे अब तक 17 से अधिक देशों में भारतीय शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि इटली और तुर्की की यूनिवर्सिटीज़ में वे नियमित रूप से शास्त्रीय संगीत की कार्यशालाएं आयोजित करते हैं। 66 वर्षीय पंडितजी ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता, प्रसिद्ध सितार वादक पंडित अरुण भट्टाचार्य से ली, और बाद में पंडित विमलेंद्र मुखर्जी से सरोद की विधिवत शिक्षा प्राप्त की। नागपुर उनकी मुख्य कर्मभूमि है और वे आज भी गुरु-शिष्य परंपरा में विश्वास रखते हुए निशुल्क संगीत सिखाते हैं।

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