नए साल पर डिलीवरी संकट: गिग वर्कर्स की हड़ताल से ऑनलाइन सेवाएं प्रभावित, कमाई और सुरक्षा को लेकर उठे सवाल

Digital Desk

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स्विगी, जोमैटो समेत कई प्लेटफॉर्म के गिग वर्कर्स ने भुगतान बढ़ाने और काम के हालात सुधारने की मांग को लेकर हड़ताल शुरू की, न्यू ईयर पर फूड और ग्रोसरी डिलीवरी में देरी की आशंका

नए साल 2026 के स्वागत से ठीक पहले देशभर में गिग वर्कर्स की हड़ताल ने ऑनलाइन डिलीवरी सेवाओं पर असर डालना शुरू कर दिया है। फूड, ग्रोसरी और ई-कॉमर्स से जुड़े प्लेटफॉर्म—जैसे स्विगी, जोमैटो, ब्लिंकिट, जैप्टो, अमेजन और फ्लिपकार्ट—पर काम करने वाले डिलीवरी वर्कर्स ने भुगतान दरों में कटौती, बढ़ते काम के घंटे और सामाजिक सुरक्षा के अभाव के खिलाफ 31 दिसंबर से सामूहिक विरोध का ऐलान किया है। इसका सीधा असर नए साल के जश्न पर पड़ सकता है, जहां त्वरित डिलीवरी की उम्मीद कर रहे उपभोक्ताओं को इंतजार करना पड़ सकता है।

वर्कर्स का कहना है कि बीते कुछ महीनों में कंपनियों ने पेमेंट स्ट्रक्चर में बदलाव कर उनकी आमदनी लगभग 50 प्रतिशत तक घटा दी है। पहले जहां 7–8 घंटे काम करने पर 900 से 1,000 रुपये तक की कमाई हो जाती थी, वहीं अब उतने ही समय में 400–500 रुपये ही मिल पा रहे हैं। कई वर्कर्स ने बताया कि अब 15 से 18 घंटे तक काम करने के बावजूद आय खर्च निकालने लायक नहीं बचती।

गिग वर्कर्स के अनुसार, कंपनियां इंसेंटिव और बोनस की शर्तें बार-बार बदल रही हैं। डिलीवरी का दबाव लगातार बढ़ रहा है, जबकि ट्रैफिक जाम या देरी की स्थिति में ग्राहकों का व्यवहार भी अक्सर आक्रामक हो जाता है। सबसे बड़ी चिंता सुरक्षा को लेकर है। वर्कर्स का आरोप है कि हादसे की स्थिति में न तो इलाज की पर्याप्त सुविधा मिलती है और न ही बीमा कवर का भरोसा।

यह हड़ताल कोई नई घटना नहीं है। 25 दिसंबर को भी गिग वर्कर्स ने विरोध दर्ज कराया था, लेकिन समाधान निकलने के बजाय हालात और बिगड़ गए। कुछ वर्कर्स ने आरोप लगाया कि विरोध करने पर आईडी ब्लॉक करने और कार्रवाई की धमकियां दी गईं। ऑर्डर की संख्या भी घट गई है, जिससे आय पर दोहरी मार पड़ी है।

हड़ताल का असर अब स्थानीय बाजारों और छोटे कारोबारियों पर भी दिखने लगा है। गुरुग्राम जैसे शहरों में कई फूड आउटलेट्स की ऑनलाइन बिक्री 70–80 प्रतिशत तक घट गई है। दुकानदारों का कहना है कि तैयार खाना डिलीवरी के अभाव में खराब हो रहा है। उपभोक्ताओं में भी नाराजगी है, खासकर त्योहारों और न्यू ईयर जैसे मौकों पर।

गिग वर्कर्स की प्रमुख मांगों में दूरी और समय के हिसाब से उचित भुगतान, पारदर्शी इंसेंटिव सिस्टम, हेल्थ इंश्योरेंस और दुर्घटना बीमा शामिल हैं। दूसरी ओर, कुछ प्लेटफॉर्म कंपनियों का तर्क है कि नया पेमेंट मॉडल परफॉर्मेंस आधारित है और इससे डिलीवरी नेटवर्क अधिक प्रभावी बनेगा।

देश में अनुमानित 80 लाख से अधिक गिग वर्कर्स डिलीवरी, लॉजिस्टिक्स और राइड-शेयरिंग सेक्टर से जुड़े हैं। रोजगार का यह मॉडल लचीला जरूर है, लेकिन न्यूनतम वेतन और सामाजिक सुरक्षा को लेकर स्पष्ट कानूनी ढांचे की कमी अब पब्लिक इंटरेस्ट का बड़ा मुद्दा बनती जा रही है। अगर बातचीत से जल्द समाधान नहीं निकला, तो नए साल की पहली रात उपभोक्ताओं और कारोबार—दोनों के लिए मुश्किल भरी हो सकती है।

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