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संभल जामा मस्जिद सर्वे मामला: मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिविल रिवीजन याचिका खारिज की
JAGRAN DESK

संभल जामा मस्जिद और श्री हरिहर मंदिर विवाद से जुड़े बहुचर्चित मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष द्वारा दायर सिविल रिवीजन याचिका को खारिज कर दिया है, जिससे अब जिला अदालत में मस्जिद के सर्वे संबंधी दीवानी वाद की सुनवाई जारी रहेगी।
हाईकोर्ट की दो टूक टिप्पणी
जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि सिविल कोर्ट में दायर मुकदमा पोषणीय है और सर्वे कमिश्नर नियुक्त करने की मांग भी विधिसंगत है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह वाद 1991 के पूजा स्थल कानून (Places of Worship Act) के प्रावधानों के अंतर्गत प्रतिबंधित नहीं है, जैसा कि याचिकाकर्ता पक्ष ने दावा किया था।
13 मई को हुआ था फैसला सुरक्षित
मस्जिद कमेटी द्वारा दाखिल की गई पुनरीक्षण याचिका पर 13 मई को बहस पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था, जिसे अब खारिज कर दिया गया है। मस्जिद पक्ष ने 19 नवंबर 2024 को संभल की अदालत द्वारा पारित उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अधिवक्ता आयोग की नियुक्ति कर जामा मस्जिद (कथित शाही ईदगाह) का प्रारंभिक पुरातत्व सर्वेक्षण करने के निर्देश दिए गए थे।
पृष्ठभूमि: क्या है विवाद
संभल के मोहल्ला कोट पूर्वी क्षेत्र में स्थित जामा मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि यह स्थल प्राचीन श्री हरिहर मंदिर का था, जिसे तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया गया। इस दावे के समर्थन में वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन सहित सात लोगों ने सिविल कोर्ट में वाद दायर कर मस्जिद के अंदर पूजा-अर्चना और प्रवेश की अनुमति मांगी थी।
तेज़ी से हुई थी सुनवाई
हिंदू पक्ष द्वारा 19 नवंबर को वाद दायर किए जाने के कुछ घंटों के भीतर ही अदालत ने अधिवक्ता आयुक्त की नियुक्ति करते हुए उसी दिन और 24 नवंबर को मस्जिद का सर्वेक्षण कराने के आदेश दिए, साथ ही 29 नवंबर तक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया था। इसी आदेश को मस्जिद कमेटी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
क्या आगे बढ़ेगा मामला?
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद संभल की जिला अदालत में सर्वे को लेकर मामला आगे बढ़ेगा, जिससे एक बार फिर धार्मिक स्थल विवाद की संवेदनशीलता सुर्खियों में आ गई है। यह मामला काशी, मथुरा और ज्ञानवापी विवादों की तर्ज पर एक और प्रमुख कानूनी संघर्ष के रूप में उभरता दिख रहा है।