जी-7 सम्मेलन और भारत-कनाडा संबंधों की जटिल कूटनीति ✍ मानसी द्विवेदी

Opinion

“डरते वो हैं जो अपनी छवि के लिए मरते हैं,
मैं तो हिंदुस्तान की छवि के लिए मारता हूं,
इसलिए किसी से नहीं डरता।”
— प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री मोदी के ये शब्द उस समय और अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं जब हम हाल ही में आए एक घटनाक्रम पर नज़र डालते हैं — जी-7 सम्मेलन 2025 के लिए कनाडा द्वारा भारत को आमंत्रण।

कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जून 2025 में कनानास्किस (अल्बर्टा) में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया है। यह आमंत्रण ऐसे समय आया है जब भारत और कनाडा के द्विपक्षीय संबंधों में भारी तनाव है। इस आमंत्रण के बाद कनाडा में खालिस्तानी संगठनों द्वारा विरोध प्रदर्शन भी किए गए, जिनमें मोदी के विरुद्ध अपशब्दों का प्रयोग किया गया।

जी-7 सम्मेलन: क्या है इसका महत्व?

जी-7 यानी ग्रुप ऑफ सेवन, विश्व की सात प्रमुख औद्योगिक शक्तियों का समूह है — अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और कनाडा। इसके अलावा यूरोपीय संघ को भी इसमें भागीदारी का आमंत्रण होता है। यह समूह वैश्विक अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और तकनीकी सहयोग जैसे मसलों पर विचार-विमर्श करता है।

भारत जी-7 का सदस्य नहीं है, फिर भी पिछले कई वर्षों से “आमंत्रित साझेदार” के रूप में शिरकत करता रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2019 से लगातार पांच बार इसमें भाग लिया है।

इस साल क्यों बढ़ी चर्चा?

इस बार विवाद इसलिए गहरा गया क्योंकि भारत को इस सम्मेलन में आमंत्रित करने में असामान्य देरी हुई। जबकि यूक्रेन, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, मैक्सिको और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों को पहले ही आमंत्रण मिल चुका था, भारत को आयोजन के महज 10 दिन पहले बुलाया गया।

विपक्षी दलों ने भी इसे मुद्दा बनाया और सवाल खड़े किए कि क्या भारत को इस बार आमंत्रित नहीं किया जाएगा?

तनाव की जड़: हरदीप सिंह निज्जर हत्या मामला

भारत-कनाडा संबंधों में खटास की असली शुरुआत जून 2023 में हुई, जब सरे (ब्रिटिश कोलंबिया) स्थित एक गुरुद्वारे के बाहर खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने संसद में बयान देते हुए भारत पर आरोप लगाया कि उनके पास “विश्वसनीय प्रमाण” हैं कि भारतीय एजेंट इसमें शामिल थे।

भारत ने इस आरोप को “निराधार” और “राजनीतिक” करार दिया। जवाब में दोनों देशों ने राजनयिक संबंधों को सीमित किया, वीज़ा सेवाएं रोकी गईं और कड़े बयान दिए गए। हाल ही में कनाडा ने चार भारतीय नागरिकों को इस मामले में गिरफ्तार भी किया है।

जी-7 में मोदी की उपस्थिति पर विरोध

प्रधानमंत्री मोदी के जी-7 आमंत्रण पर वर्ल्ड सिख ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ कनाडा ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इसे “सिख समुदाय के साथ धोखा” बताया और सवाल किया कि क्या व्यापार और कूटनीति, न्याय और मानवाधिकारों से ऊपर हो सकते हैं?

यह बहस महज़ एक देश या समुदाय तक सीमित नहीं, बल्कि वैश्विक कूटनीति की मूलभूत चुनौतियों को सामने लाती है — क्या लोकतांत्रिक मंचों पर न्याय और मानवाधिकारों को प्राथमिकता दी जाएगी या भूराजनीतिक हित निर्णायक रहेंगे?

कूटनीति बनाम न्याय: कठिन संतुलन

कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने भारत को आमंत्रण देने को “रणनीतिक विवेक” करार दिया। उनका कहना था कि भारत वैश्विक समस्याओं के समाधान में एक प्रमुख भागीदार है और उसे संवाद से बाहर नहीं रखा जा सकता।

वहीं भारत का रुख स्पष्ट है — वह खालिस्तानी तत्वों को आतंकवादी मानता है और निज्जर जैसे चरमपंथियों का समर्थन खुद कनाडा के लिए खतरा है। भारत यह भी कह चुका है कि वह किसी भी साजिश में शामिल नहीं है।

क्या जी-7 में उठेगा यह विवाद?

हालांकि जी-7 सम्मेलन का एजेंडा मुख्यतः आर्थिक और सुरक्षा केंद्रित होता है, लेकिन मानवाधिकार और आतंकवाद जैसे विषय अक्सर वार्ताओं में आ ही जाते हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मोदी और कार्नी के बीच इस मुद्दे पर कोई चर्चा होती है या नहीं।

निष्कर्ष: एक लोकतांत्रिक संतुलन की परीक्षा

जी-7 सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति भारत की वैश्विक साख को दर्शाती है। परंतु कनाडा में उभरते विरोध यह दिखाते हैं कि विश्व राजनीति में न्याय, भावनाएं और रणनीति का संतुलन साधना अब और अधिक जटिल हो चुका है।

भारत और कनाडा — दोनों लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं। दोनों को यह सुनिश्चित करना होगा कि संवाद पारदर्शी हो, न्याय को प्राथमिकता मिले और वैश्विक मंच पर केवल आर्थिक हित नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों की भी रक्षा हो।


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