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27 जून: उज्जैन में महाकालेश्वर का अद्भुत श्रृंगार दर्शन, सुबह की भस्म आरती में उमड़ा श्रद्धा का सागर
Ujjain, MP

सावन से पूर्व के इस शुभ आषाढ़ माह में, शुक्रवार 27 जून 2025 को उज्जैन स्थित श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में प्रातःकाल की भस्म आरती के दौरान शिवभक्तों ने एक बार फिर भगवान महाकाल के अलौकिक श्रृंगार दर्शन का दिव्य अनुभव किया।
भस्म आरती, जो महाकाल मंदिर की सबसे प्राचीन और विशिष्ट परंपरा मानी जाती है, प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व संपन्न होती है। आज के दर्शन विशेष इसलिए भी रहे क्योंकि भगवान महाकाल का रूप अत्यंत भव्य, श्रृंगारित एवं तेजस्वी दिखाई दिया। भगवान को चंदन, भस्म, गुलाल, विविध फूलों की मालाओं, चमकदार मुकुट और भक्तिपूर्ण अंगराग से सजाया गया। उनके त्रिनेत्र, विशाल नेत्रों में लगे शृंगार, और उज्ज्वल तिलक के दर्शन कर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो उठे।
मंदिर परिसर 'हर हर महादेव' और 'जय श्री महाकाल' के गगनभेदी जयघोष से गुंजायमान हो गया। श्रद्धालुओं की भीड़ रात 2 बजे से ही मंदिर में उमड़ने लगी थी, ताकि वे इस पावन आरती और श्रृंगार के साक्षी बन सकें।
श्रृंगार की विशेषताएं:
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महाकालेश्वर के मुख पर प्राकृतिक गुलाल और चंदन से भव्य रेखांकन किया गया
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सिर पर रजत मुकुट और शुद्ध फूलों की मालाएं
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गले में विविध पुष्पों की सुंदर वलयाकार माला
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लाल, पीले, सफेद और केसरिया वस्त्रों से अलंकृत
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चारों ओर दीप-प्रज्ज्वलन, नैवेद्य और पंचामृत अर्पित
भावनाओं से ओतप्रोत वातावरण:
भस्म आरती का आरंभ ढोल, नगाड़ों, शंख और त्रिपुंड मंत्रों की ध्वनि के साथ हुआ। पूजारीगण द्वारा मंत्रोच्चारण और वेद पाठ के साथ बाबा महाकाल की आरती की गई। भक्तगण folded hands में भावविभोर हो महाकाल के ध्यान में लीन रहे।
भक्ति और परंपरा का संगम:
भस्म आरती महज एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच शिव के स्वरूप का अद्वितीय दर्शन है। यह परंपरा उज्जैन में हजारों वर्षों से चली आ रही है, जो शिवभक्ति के उच्चतम रूप को दर्शाती है। आज के दर्शन ने पुनः यह सिद्ध कर दिया कि महाकाल की नगरी में समय रुक जाता है और केवल श्रद्धा प्रवाहित होती है।