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हास्य की गंभीर परछाईं छोड़ गए सुरेन्द्र दुबे: कवि की अंतिम यात्रा आज, कुमार विश्वास देंगे विदाई
Raipur, CG

पद्मश्री हास्य कवि डॉ. सुरेन्द्र दुबे अब हमारे बीच नहीं रहे। रथयात्रा के पावन दिन, जब देश आस्था के रंग में रंगा था, तब छत्तीसगढ़ ने अपनी एक अमूल्य साहित्यिक धरोहर खो दी। गुरुवार को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। आज रायपुर स्थित मारवाड़ी श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार होगा, जिसमें कवि कुमार विश्वास भी शामिल होंगे।
उनकी अंतिम यात्रा अशोका प्लेटिनम स्थित निवास से निकली, जिसमें उनके चाहने वालों का हुजूम उमड़ पड़ा। इस विदाई में कवि कुमार विश्वास सहित देशभर से कई नामचीन साहित्यकार और कवि शामिल हुए।
कवि नहीं, शब्दों के जादूगर थे सुरेन्द्र दुबे
छत्तीसगढ़ की धरती पर जन्मा यह शब्दों का जादूगर केवल हास्य रचने वाला कवि नहीं था, बल्कि समाज को हंसाते हुए गहराई से सोचने पर मजबूर कर देने वाला विचारक भी था। “दू के पहाड़ा ल चार बार पढ़” और “टाइगर अभी जिंदा है” जैसी कविताओं ने उन्हें आमजन की जुबान पर ला दिया।
11 देशों में गूंजा छत्तीसगढ़ी व्यंग्य
डॉ. दुबे ने अमेरिका के 52 शहरों सहित 11 देशों में अपनी कविता के झंडे गाड़े। उन्होंने लाल किले की प्राचीर से 8 बार कवि सम्मेलन में कविता पाठ किया, जो किसी भी मंचीय कवि के लिए सम्मान की पराकाष्ठा है।
जीवन भर बांटी हंसी, अब छोड़ गए अमर शब्द
साहित्य, नाटक, अभिनय और हास्य की कई विधाओं में उन्होंने समान अधिकार से लेखनी चलाई। दूरदर्शन के लिए नाटक, छत्तीसगढ़ी रामलीलाओं में सीता की भूमिका, और अभिनंदन ग्रंथ की तैयारी जैसी कई परतें उनके रचनात्मक व्यक्तित्व को परिभाषित करती हैं।
अभिनंदन ग्रंथ अधूरा रह गया...
प्रकाशक सुधीर शर्मा ने बताया कि डॉ. दुबे पर एक ‘अभिनंदन ग्रंथ’ तैयार किया जा रहा था, जिसमें उनके लेखन, संघर्ष और परिवार की स्मृतियां संजोई जा रही थीं। लेकिन ग्रंथ के विमोचन से पहले ही शब्दों का यह शिल्पी मौन हो गया।
"अब ज़्यादा कुछ नहीं करना..." — आखिरी दिनों की झलक
कवि मीर अली मीर ने साझा किया कि आखिरी दिनों में सुरेन्द्र जी कुछ शांत और आत्मसंयमी नजर आते थे। उन्होंने एक काव्य कुंभ में कहा — "बहुत कर लिया जिंदगी में, अब ज़्यादा कुछ नहीं करना।" यह वक्तव्य मानो उनके अंतिम अध्याय का संकेत था।
गांव-गांव में 'कविता की बारात' जैसा स्वागत
कवियों ने बताया कि वे जहां भी मंच पर जाते, उनका स्वागत किसी दूल्हे की तरह होता। आतिशबाजी, नारियल, छत्तीसगढ़ी गमछा और जयघोष — यही उनकी लोकप्रियता का परिचायक था।
अनुशासन और आत्मसंयम की मिसाल
सुबह 4 बजे कार्यक्रम से लौटने पर भी डॉ. दुबे ब्रश किए बिना भोजन नहीं करते थे। मंच पर जितने सहज, जीवन में उतने ही सलीकेदार रहे।
जीवन परिचय – डॉक्टर से हास्य कवि तक
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जन्म: 8 अगस्त 1953, बेमेतरा
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पेशा: आयुर्वेदिक चिकित्सक
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पहचान: हास्य-व्यंग्य कवि, नाटककार, मंचीय कलाकार
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सम्मान: पद्मश्री (2010), काका हाथरसी हास्य रत्न (2008), राज्य अलंकरण, अमेरिका में हास्य शिरोमणि व छत्तीसगढ़ रत्न
राजनीतिक उपेक्षा, फिर भी कविता नहीं छोड़ी
2018 में बीजेपी में शामिल होने के बाद वे कांग्रेस शासित सरकार के आयोजनों से धीरे-धीरे दूर कर दिए गए। हालांकि, उन्होंने कभी इस उपेक्षा की शिकायत नहीं की, बल्कि व्यंग्य के माध्यम से मंच पर अपनी पीड़ा जाहिर की।
छत्तीसगढ़ और हिंदी कविता ने एक रत्न खोया
आज जब पूरा देश रथयात्रा के उल्लास में डूबा है, तब छत्तीसगढ़ का साहित्य जगत शोक में डूबा है। हंसी बाँटने वाला चला गया, लेकिन वो शब्द छोड़ गया जो अब चुप नहीं रहेंगे।
डॉ. सुरेन्द्र दुबे की कविताएं, किस्से और यादें आने वाली पीढ़ियों को न केवल हंसाना सिखाएंगी, बल्कि सोचने का हुनर भी देंगी।