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लोकतंत्र सेनानियों को मुख्यमंत्री साय ने किया सम्मानित, कहा – इनका बलिदान हमारी लोकतांत्रिक चेतना की नींव है
Raipur, CG
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छत्तीसगढ़ में आज आपातकाल स्मृति दिवस पर एक गरिमामय समारोह आयोजित किया गया, जिसमें मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने लोकतंत्र की रक्षा में अहम भूमिका निभाने वाले सेनानियों को सम्मानित किया। इस अवसर पर उन्होंने लोकतंत्र सेनानियों की संघर्षपूर्ण यात्रा को वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया।
मुख्यमंत्री साय ने कहा, “लोकतंत्र केवल शासन प्रणाली नहीं, बल्कि नागरिक स्वतंत्रता की जीवंत अनुभूति है। आपातकाल के 21 महीने भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय थे, जहां स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति और मानवाधिकारों का गला घोंटा गया।”
लोकतंत्र की मशाल थामे रहे सेनानी, भुगतीं यातनाएं
सीएम ने बताया कि उनके स्वर्गीय पिता नरहरि प्रसाद साय भी आपातकाल में 19 महीने तक जेल में बंद रहे। उन्होंने कहा कि उस दौर की क्रूरता ने अंग्रेजी हुकूमत की यातनाओं की भी याद दिला दी। “लोकतंत्र सेनानियों को जंजीरों में जकड़ कर शारीरिक और मानसिक पीड़ा दी गई। लेकिन वे न झुके, न रुके।”
‘वो 21 महीने’ पुस्तक का विमोचन भी किया गया
मुख्यमंत्री साय ने इस अवसर पर लेखक सच्चिदानंद उपासने की पुस्तक ‘वो 21 महीने: आपातकाल’ का विमोचन किया, जो उस समय के भयावह अनुभवों को दस्तावेजी रूप देती है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक को हर युवा को पढ़ना चाहिए, जिससे लोकतंत्र के मूल्य समझे जा सकें।
राजकीय सम्मान और वित्तीय सहायता की नई घोषणाएं
मुख्यमंत्री ने ऐलान किया कि अब से लोकतंत्र सेनानियों की अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ की जाएगी, और उनके परिजनों को ₹25,000 की सहायता राशि दी जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि विधानसभा में एक अधिनियम पारित कर यह सुनिश्चित किया गया है कि कोई भी सरकार भविष्य में लोकतंत्र सेनानियों की सम्मान योजना को समाप्त न कर सके।
पूर्ववर्ती सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र सेनानियों को दी जाने वाली सम्मान राशि को बंद कर दिया गया था, जिसे वर्तमान सरकार ने फिर से शुरू किया और पिछले पांच वर्षों की बकाया राशि का भुगतान भी किया गया।
रमन सिंह बोले- आपातकाल में देश को जेल में बदल दिया गया था
विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा, “आपातकाल के दौरान लोकतंत्र के सभी स्तंभ—न्यायपालिका, कार्यपालिका, मीडिया और विधायिका—को पंगु कर दिया गया था। प्रेस पर सेंसरशिप लागू हुई और जनआक्रोश को दमनकारी तरीकों से कुचला गया।” उन्होंने कहा कि आज यदि लोकतंत्र जीवित है, तो इसका श्रेय इन साहसी सेनानियों को जाता है।
सच्चिदानंद उपासने और पवन साय ने भी किया संबोधित
कार्यक्रम में लोकतंत्र सेनानी संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सच्चिदानंद उपासने और पवन साय ने भी अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि आपातकाल की स्मृति केवल अतीत नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक सतत चेतावनी है।
सैकड़ों सेनानी और गणमान्यजन रहे उपस्थित
इस अवसर पर उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन, विधायक मोतीलाल साहू, दीपक म्हस्के, संजय श्रीवास्तव, अमरजीत छाबड़ा, नन्द कुमार साहू, दिवाकर तिवारी सहित बड़ी संख्या में लोकतंत्र सेनानी और उनके परिजन उपस्थित रहे।