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वैष्णवाचार्य पुंडरीक गोस्वामी महाराज: आस्था, परंपरा और आधुनिक भारत का सेतु
Digital Desk
वृंदावन की आध्यात्मिक परंपरा को वैश्विक मंच तक पहुंचाने वाले वैष्णवाचार्य पुंडरीक गोस्वामी महाराज आज केवल एक कथावाचक नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण के सक्रिय सूत्रधार के रूप में पहचाने जाते हैं। राधारमण मंदिर के 38वें आचार्य के रूप में उन्होंने वैष्णव परंपरा को नई सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना से जोड़ा है।
भागवत, रामकथा और गोपीगीत के ओजस्वी और भावपूर्ण प्रवचन के लिए प्रसिद्ध पुंडरीक गोस्वामी महाराज ने देश-विदेश में कथा के माध्यम से भारतीय संस्कृति का प्रचार किया है। वे ऐसे पहले व्यास हैं जिन्होंने उपराष्ट्रपति भवन में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया, जो भारतीय आध्यात्मिक इतिहास में एक विशेष उपलब्धि मानी जाती है।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के प्रांगण में पहली भागवत कथा का आयोजन कर उन्होंने धर्म और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के नए आयाम स्थापित किए। हरिद्वार की हर की पैड़ी पर तीन दिवसीय गीता सत्संग के माध्यम से उन्होंने गंगा और देवभूमि की महिमा को जन-जन तक पहुंचाया।
अयोध्या में श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन और प्राण प्रतिष्ठा समारोह में वे वैष्णव धर्म का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रमुख गुरुओं की पहली पंक्ति में उपस्थित रहे। यह उनकी आध्यात्मिक प्रतिष्ठा और राष्ट्रीय स्वीकार्यता को दर्शाता है।
मोरारी बापू, रमेश भाई ओझा, अवधेशानंद महाराज, स्वामी रामदेव, श्रीश्री रविशंकर और स्वामी चिदानंद सरस्वती जैसे प्रमुख संतों द्वारा उनकी कथा सुनी जाना उनकी विद्वता और प्रभाव को रेखांकित करता है। मोरारी बापू द्वारा उन्हें तुलसी अवार्ड से सम्मानित किया जाना भी इसी क्रम की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
पुंडरीक गोस्वामी महाराज का सामाजिक योगदान भी उल्लेखनीय है। उनके द्वारा शुरू की गई ‘निमाई पाठशाला’ से दो लाख से अधिक विद्यार्थी निशुल्क जुड़े हैं। इस पहल की सराहना संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में भी की गई, जहां इसकी जानकारी उनकी पत्नी रेणुका गोस्वामी ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत की।
ऑक्सफोर्ड से अध्ययन और धर्मशास्त्र में गहरी पकड़ रखने वाले पुंडरीक गोस्वामी महाराज हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी में प्रवचन देकर वैश्विक स्तर पर वैष्णव परंपरा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उत्तर और दक्षिण भारत के वैष्णव संप्रदायों को जोड़ने वाले ऐतिहासिक आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में उनकी भूमिका ने उन्हें समकालीन भारत का एक प्रमुख आध्यात्मिक व्यक्तित्व बना दिया है।
