केरल में छत्तीसगढ़ के प्रवासी मजदूर राम नारायण बघेल की मॉब लिंचिंग के मामले में केरल सरकार ने पीड़ित परिवार को 30 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने का फैसला किया है। यह निर्णय राज्य कैबिनेट की बैठक में लिया गया। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार ने भी मृतक के परिजनों को 5 लाख रुपये की सहायता देने की घोषणा की है। यह घटना 17 दिसंबर को केरल के पलक्कड़ जिले के अट्टापल्लम इलाके में हुई थी, जहां राम नारायण को कथित तौर पर बांग्लादेशी नागरिक समझकर भीड़ ने बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला।
पुलिस के अनुसार, 17 दिसंबर की रात स्थानीय लोगों ने चोरी के संदेह में राम नारायण को पकड़ा। आरोप है कि बिना किसी ठोस सबूत के करीब एक दर्जन लोगों ने उसकी पिटाई कर दी। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सामने आया कि राम नारायण के शरीर पर 80 से अधिक चोटों के निशान थे। सिर में गंभीर चोट और अत्यधिक रक्तस्राव के कारण उसकी मौत हुई। डॉक्टरों ने बताया कि शरीर का कोई हिस्सा ऐसा नहीं था, जहां चोट न हो।
राम नारायण बघेल छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले का निवासी था और केरल में मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करता था। उसके दो छोटे बेटे हैं, जिनकी उम्र 8 और 10 साल है। बुधवार को उसका अंतिम संस्कार पैतृक गांव में किया गया। परिजनों का आरोप है कि उन्हें समय पर मौत की जानकारी नहीं दी गई और पुलिस ने शुरू में केवल यह बताया कि राम नारायण थाने में है।
वालैयार थाना पुलिस ने इस मामले में अब तक 7 आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जबकि जांच में करीब 15 लोगों की संलिप्तता की आशंका जताई गई है। पुलिस का कहना है कि शुरुआती जांच में चूक के चलते कुछ संदिग्ध राज्य छोड़कर फरार हो गए। पुलिस ने यह भी स्पष्ट किया है कि राम नारायण का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था।
इस घटना के बाद राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई। कांग्रेस ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और मृतक के परिवार को एक करोड़ रुपये मुआवजा देने की मांग की। केरल सरकार के मंत्री एम.बी. राजेश ने इसे नफरत की राजनीति का नतीजा बताया। वहीं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे साफ तौर पर मॉब लिंचिंग करार देते हुए त्वरित न्याय की मांग की है।
राज्य मानवाधिकार आयोग ने घटना का स्वतः संज्ञान लेते हुए पलक्कड़ जिला पुलिस प्रमुख से तीन सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। आयोग ने यह भी कहा है कि मामले में किसी भी स्तर पर लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
सरकारी मुआवजे के साथ-साथ अब नजरें इस बात पर टिकी हैं कि फरार आरोपियों की गिरफ्तारी कब होती है और अदालत में यह मामला कितनी तेजी से आगे बढ़ता है। यह घटना एक बार फिर देश में मॉब लिंचिंग और प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करती है।