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तेलंगाना: 45 साल बाद नक्सली दंपति ने छोड़ा हिंसा का रास्ता, सरेंडर कर थामा शांति का दामन
Jagdalpur, CG

तेलंगाना राज्य में माओवाद की सक्रिय राजनीति में दशकों तक भागीदारी निभाने वाले एक हार्डकोर नक्सली दंपति ने आखिरकार हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है।
62 वर्षीय माला संजीव उर्फ लेंगु दादा और उनकी पत्नी 50 वर्षीय पेरुगुल्ला पार्वती ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है। इन दोनों पर सरकार द्वारा 25-25 लाख रुपए का इनाम घोषित था।
नक्सली गतिविधियों में चार दशक
लेंगु दादा ने 1980 में पीपुल्स वार ग्रुप से जुड़कर नक्सल आंदोलन की शुरुआत की थी। शुरुआती दिनों में वह जन नाट्य मंडली का हिस्सा रहा, जहां वह माओवादी विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में शामिल रहता था। भारत के लगभग 16 राज्यों में उसने माओवादी प्रचार किया।
1996 के बाद वह संगठन की सशस्त्र शाखा में सक्रिय हो गया और मनुगुरु, एटूनगरम, पांडव दलम सहित कई क्षेत्रों में प्रमुख जिम्मेदारियाँ निभाईं। वर्ष 2003 में उसे दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति (DKSZCM) में भेजा गया, जहां वह चेतना नाट्य मंडली (CNM) के प्रमुख के रूप में काम करता रहा।
तीन बार मुठभेड़ से बाल-बाल बचा
लेंगु दादा 2002, 2005 और 2017 में पुलिस मुठभेड़ों से बच निकलने में सफल रहा। 2005 में बीजापुर के जंगलों में और 2017 में अबूझमाड़ इलाके की मुठभेड़ में उसकी जान बाल-बाल बची थी।
पार्वती: संगठन की महिला शक्ति
पार्वती भी लंबे समय से नक्सल आंदोलन का हिस्सा रही है। उसने 1992 में संगठन से जुड़ाव किया था और CNM की उप-संस्कृति समिति में प्रमुख भूमिका निभाई। उसे भी AOBSZCM से होते हुए DKSZCM तक पदोन्नति मिली थी।
पहली पत्नी की मौत के बाद फिर की शादी
लेंगु दादा ने 1982 में अपनी पहली पत्नी विद्या से शादी की थी, जो 2002 में एक एनकाउंटर में मारी गई। इसके बाद 2007 में उसने पार्वती से विवाह किया। दोनों ने संयुक्त रूप से संगठन के भीतर कई वर्षों तक कार्य किया।
आत्मसमर्पण के पीछे की वजह
पुलिस सूत्रों के अनुसार, दंपति ने वर्षों की हिंसा और संघर्ष के बाद अब शांति की ओर लौटने का निर्णय लिया है। दोनों का मानना है कि युवा पीढ़ी को शिक्षा और विकास की दिशा में ले जाने की ज़रूरत है, न कि हथियार थमाने की।