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अप्रैल में थोक महंगाई दर 13 महीने के निचले स्तर पर, खाने-पीने की चीजों की कीमतों में राहत
Jagran Desk

देश में अप्रैल 2025 में थोक महंगाई दर घटकर 0.85% पर पहुंच गई है, जो पिछले 13 महीनों में सबसे निचला स्तर है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, यह गिरावट मुख्य रूप से खाने-पीने की चीजों और रोजमर्रा की जरूरत के सामान की कीमतों में कमी के कारण दर्ज की गई है। मार्च में यह दर 2.05% थी, जबकि फरवरी 2025 की संशोधित दर को 2.38% से बढ़ाकर 2.45% कर दिया गया है।
किस वजह से घटी महंगाई?
रोजमर्रा की वस्तुओं की थोक महंगाई 0.76% से घटकर -1.44%, और खाद्य वस्तुओं की महंगाई 4.66% से गिरकर 2.55% पर आ गई है। ईंधन और बिजली क्षेत्र में भी महंगाई दर 0.20% से घटकर -2.18% दर्ज की गई है। वहीं, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में थोक महंगाई दर 3.07% से घटकर 2.62% पर पहुंच गई।
WPI का आम आदमी पर असर
थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में गिरावट से आम उपभोक्ताओं को राहत मिल सकती है, हालांकि यह लाभ प्रत्यक्ष नहीं होता। जब थोक महंगाई लगातार ऊंची बनी रहती है, तो उत्पादक कंपनियां लागत का बोझ ग्राहकों पर डाल देती हैं, जिससे खुदरा महंगाई बढ़ती है। सरकार कभी-कभी टैक्स घटाकर इसकी भरपाई करने की कोशिश करती है, जैसा कि कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती करके किया गया था।
WPI में किन चीजों का कितना वेटेज?
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मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स – 64.23%
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प्राइमरी आर्टिकल्स (खाद्य, खनिज, कच्चा तेल) – 22.62%
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फ्यूल एंड पावर – 13.15%
प्राइमरी आर्टिकल्स में अनाज, सब्जियां, तेल बीज, खनिज और क्रूड ऑयल शामिल हैं।
थोक बनाम खुदरा महंगाई: क्या फर्क है?
भारत में महंगाई दो स्तरों पर मापी जाती है – थोक (WPI) और खुदरा (CPI)। खुदरा महंगाई उपभोक्ताओं द्वारा दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है, जबकि थोक महंगाई उत्पादकों और विक्रेताओं के बीच होने वाले व्यापार के स्तर पर मापी जाती है।
थोक महंगाई में जहां मैन्युफैक्चरिंग वस्तुओं की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा होती है, वहीं खुदरा महंगाई में खाद्य उत्पादों, हाउसिंग, फ्यूल और अन्य सेवाओं का बड़ा योगदान होता है।