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मध्यप्रदेश में ‘काली श्रम संहिताओं’ के खिलाफ ट्रेड यूनियनों का प्रदर्शन...
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समूचे प्रदेश के श्रम कार्यालयों के समक्ष विरोध, राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा गया
मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों में आज काली श्रम संहिताओं के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। 10 केंद्रीय श्रमिक संगठनों और 20 से अधिक औद्योगिक फेडरेशनों के संयुक्त ट्रेड यूनियन मोर्चा के आह्वान पर केंद्र और राज्य के श्रम कार्यालयों के समक्ष शांतिपूर्ण प्रदर्शन आयोजित किए गए और प्रदर्शन के बाद महामहिम राष्ट्रपति के नाम संयुक्त ज्ञापन सौंपा गया।
प्रदर्शन मुख्य रूप से भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, रीवा, सतना, उज्जैन, भिंड, सागर, सिंगरौली, मुरैना, बैतूल, नीमच, सीधी, अनूपपुर, मंडीदीप, पीथमपुर, बालाघाट और देवास सहित अनेक नगरों में हुआ। प्रदर्शनकारियों ने हाथों में बैनर लेकर विरोध जताया और शासन तथा नीति निर्माताओं से उनकी मांगों पर सकारात्मक कार्रवाई की अपील की।
संयुक्त मोर्चा में शामिल संगठनों के नेताओं ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा बिना व्यापक सलाह और बातचीत के चार श्रम संहिताएं लागू की गई हैं, जिनके कारण कामगार वर्ग के मौलिक अधिकार और सुरक्षा ढांचे कमजोर हो सकते हैं। श्रमिक संगठनों का कहना है कि इन संहिताओं से रोजगार सुरक्षा, श्रमिक संरक्षण और कल्याण संबंधी प्रावधानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
क्या हैं ‘काली श्रम संहिताएं’?
सरकार ने हाल ही में चार श्रम संहिताओं को लागू किया है, जिनमें Code on Wages, Industrial Relations Code, Social Security Code, और Occupational Safety, Health & Working Conditions Code शामिल हैं। इन संहिताओं का उद्देश्य 29 पुराने श्रम कानूनों को संक्षेप में बदलकर लागू करना है। सरकार का दावा है कि इसका लाभ श्रमिकों को बेहतर सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम वेतन और सुरक्षित कार्य परिस्थितियों के रूप में मिलेगा।
हालांकि, व्यापक ट्रेड यूनियन नेटवर्क ने इन संहिताओं को “एकतरफा” और “कार्यकर्ता विरोधी” बताते हुए श्रम सुरक्षा, हायर-फायर नियमों, काम के घंटे और संघ गठन के अधिकार जैसे मुद्दों पर चिंताएं जताई हैं। यूनियनों का तर्क है कि इससे श्रमिक वर्ग को संरक्षित करने वाले पूर्व कानूनों की तुलना में सुरक्षा ढांचे कमजोर होंगे।
ज्ञानपत्र में उठी मुख्य मांगें
प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति के नाम सौंपे गए ज्ञापन में संयुक्त मोर्चा ने प्रमुख मांगों को स्पष्ट रूप से रखा है। इनमें शामिल हैं:
लागू चार श्रम संहिताओं को रद्द करने की मांग।
राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन ₹26,000 प्रति माह लागू किया जाए।
सभी श्रमिकों के लिए न्यूनतम पेंशन ₹9,000 प्रतिमाह सुनिश्चित किया जाए।
आउटसोर्सिंग और निश्चित अवधि रोजगार पर रोक लगाए जाए।
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों, बैंकों और बीमा कंपनियों के निजीकरण पर रोक।
पुरानी पेंशन योजना लागू की जाए।
मूल्य वृद्धि नियंत्रण और किसानों को MSP गारंटी प्रदान किया जाए।
प्रदर्शनकारियों ने इन मांगों को संविधान में निहित न्याय और समानता के अधिकारों से जुड़ा बताया और कहा कि सरकार को शीघ्र कार्रवाई करनी चाहिए।
पृष्ठभूमि और आगे की स्थिति
नए श्रम संहिताओं को लेकर देश भर में ट्रेड यूनियनों का विरोध लंबे समय से जारी है। गंभीर विरोध के चलते कई संगठन आगे फरवरी 2026 में देशव्यापी हड़ताल जैसे व्यापक संघर्ष की रूपरेखा भी तैयार कर रहे हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, सरकार और श्रमिक संगठनों के बीच संवाद और समन्वय की कमी विरोध को बढ़ा रहा है। यदि आगे भी मांगों पर कोई ठोस वार्ता नहीं होती है, तो आंदोलन और व्यापक रूप ले सकता है, जिससे प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर श्रमिक राजनीति की स्थिति पर असर पड़ सकता है।
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